पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/१८३

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(बयालासमा


जैसे लोग अपने माय के अनुसार, देवता को प्रतिमा बनया कर उसे पूजते है, वैसे ही कुसुम बसन्तकुमार की एक कद-आदम' तस्वीर एक अच्छे गुसव्विर ले अगवा कर और बाग के एक कमरे मे उसे एक संगमर्मर की चौकी पर अरजकर रात-दिन उसे निहारा करती और फूलों के गजरे से सजा करती थी! सचमुच, बसन्तकुमार बहुत सुन्दर और सुडौल आदमी था और उसकी सुन्दरता रूपगर्विता तरुणी के मानभञ्जन करने की मानों दिव्योषधि थी! उसका सुन्दर रंग प्रफुल्ल-मल्लिकासा गौर, शरीर बलिष्ठ, कोमल और अनतिस्थूल; ललाट प्रशस्त और सूक्ष्म, परिष्कृत, सुवासित, कंचित-कृष्णकंशजाल से मडितलता-गल सूक्ष्मघन, कामका- कार और दूरायत तया निविड़िवण नासिकाउन और सुकीली; बिद्याधर रक्तवर्ण, पतले और सुकोमल नेत्र आकांधलम्बी, नुकोले, तथा स्निग्ध-कटाक्षमय; ग्रीवा दीर्घ और पुष्टः तथा अन्यान्य अग पारिपाट्यमय और साचे के ढले से सुडौल, गोल-मटोल थे! वह हाथ की छड़ी धुमाल घुमाते शा में पहुंचा। कमरे का द्वार भीतर से बंद था, जो धक्का देने ही खुल गया। आरामगृह सुन्दरता से सजा था. बड़ी बडी तसबी, शीशे, आउने, झाड, फानूस, हांडी, दीवारगीर आदि आराइशों से चारों ओर से कमरा भगा-पूरा था । जमीन से ऊनी कार्पेट और ग़लीचे का फर्श और ही शोभा देता था ! उसपर उत्तमना से इधर-उधर डैस्क, मेज, कुर्सी, मृढ़े, टेबुल, आलमारी और हलमा अर ही छटा झलका रहे थे। घर खब ऊंचा, लवा-चौड़ा और प्रशाम्त तथा सुहावना था ! चांदो के पाए के पलय पर मखमली गदी-नकिए जरदीना कान के, रनिकों के वित्त को उधर ही साचलेने थे ! उनी मरे में, सब सुखद सामग्री के अलावे, एक और भी निरूपम नंदनशन का अपूर्व 'स्वर्गीय-कुसुम' सुमित था, पर वह सजीव पदार्थ था! उसी कलिमंदिर में दान-द्वार के सामने एक परम सुन्दरी आईने के आगे वैसा बानो में कंधी फेर रही थी। उसके दो उदासी की दूर समाधानी दासी खवानी में लग रही थी। दोनो मौज की बात जा रही थी। द्वार धुललेही अध मिसस जिसका मा रह गई और प्रीति को रख