परिच्छद) कुसुमकुमारी। - ew - - AAPP P - RVe मम्ममा बयालीसवां परिच्छेद, स्मान अगाध प्रेम " इन्दीवरेण नयनं मुखमम्वुजेन, कन्देन दन्तमधरं नवपल्लवेन । अङ्गानि चम्पकदलैः स विधाय वेधा, कान्त कथं घटितवानुपलेन चेतः ॥" (क्षारशतके.) तो थोड़ी देर तक उन दोनो ने एक दूसरे के गले से INR लगकर खूब हो आंसू बहाया और इसमें ऐसासुल पाया कि जिसका अनुभब भुक्तभोगी पातक और प्यारी पढ़नवालियां ही कर सकती हैं ! दो घंटे पीछे, कुसुम ने कुछ जलपान कराकर बरजोरी वसन्त- कुमार को बाग से विदा किया! एक विचित्र घटना के हो जाने से कसुम के अगाध प्रेम की एक और बानगी देखिए,-- बसन्तकुमार की स्त्री गुलावदेई अपने पिता के यहां गई हुई थी। उसके जाने पर वसन्त के हजार कहने पर भी कुसुम घर में एक दिन भी साकर न रही । बस, वह जो बाग में रहने लगी थी, सो वहीं रही। हां! इतना अवश्य हुआ कि तब बसन्त भी रात दिन बाग ही में. कसुम के पास ही रहने लगा था। किन्तु कुसुम की चिसवृत्ति बड़ी ही विलक्षण हो गई थी! यद्यपि बसन्त उसके हृदय या उसके प्रेम की गंभीरता की थाह रत्तीभर भी नहीं पा सकता था, और यद्यपि कुसुम के प्यार में कुछ भी अन्तर नहीं पड़ा था. तो भी वह (कुसुम ) बसन्तकुमार का व्याह कराके एक प्रकार से संसार और भोगविलास से अपने मन को खेंच बैठी थो । यद्यपि कभी कभी उसके इस स्वभाव के कारण बसन्त उनसे झगड़ बैठता था, पर उस ( कुसुम) का सश्चा प्यार ऐसा था कि, वह (प्यार) बिना कुसुम के कुछ कहे ही, बसन्त के भागड़े को निक्टा दता था
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