स्वगायकसम । (यांवालासवा बसन्त,-५ मई, वाह ! यह तोनई तरहदारी की गीत निकाली किन्तु प्यारी ! आज तुम्हारे मन मे क्या समाई हुई है,सो क छ समझ नहीं पड़ता!" कसम,-" सच कहना!" किन्तु यदि बसन्त ध्यानपूर्वक गाने के समय कुसुम के भाव को देखता तो समझता कि, 'आज प्यारी कुसुम के हृदय मे कोटि- कोटि चिता धधक रही हैं !' कसम ने बाजा बंद कर दिया और घबरा कर बसन्त की गोद में अपना सिर रख देर तक वह आख फाड़-फाड़-कर उस (बसन्त) के मुख की ओर देखती रही! मानो देखने से और भी देखने की लालसा बढ़ती जाती थी! रह-रह कर उसकी आंखों मे आंसू भर-भर आते. पर वह उन्हें पी जाती थी। यद्यपि बसन्त ने अभी तक कसम के भाव पर भरपूर ध्यान नहीं दिया था, पर इतना वह अवश्य समझता था कि, 'आज प्यारी क सम का चित्त, न जाने क्यों, डामाडोल होरहा है!' कसम ने हंसकर कहा,--"जाओ, बहुत रात बीती; अब घर जाओ । मुझे भी नींद आती है। " बसन्त,-"नींद तो आती नहीं, न गत ही बहुत गई है, पर मुझे टालने के लिये तुम्हारा यह सब ढंग है!" कसम ने कष्ट से एक लंबी सांस लेकर कहा,-"नहीं, सो बात नहीं है। वहिन गुलाब तुम्हारी बाट जोहती होगी।" बसन्त,-"पर, नहीं; आज तो चंदा यहीं रहेगा!" क सम.--"नहीं, अब जाओ; पर मुझे भूल न जाना!" यद्यपि बसत नहीं उठता था, पर बरज़ोरी क स म ने उसे उठाकर कलेजे से लगाया और बड़े कट से अपने मन को सम्हाल कर एक बेर सिर से पैर तक अपने प्यारे को देख लिया ! मुख चूमा, गले लगाया और फिर निहारा !!! बसन्त ने सुस्करा कर गाढ़ालिंगन करके कहा,--" पगली की भाति यों आंखे फाड़-फाड़कर आज क्यो देख रही हौ ?" कसम ने बड़े कष्ट से उमड़ते हुए आंस ओं के बेग को रोक, कहा, “क्या न देख १५ बसन्स ने परिहास से कहा, 'सो थोडी देर और यों ही
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