परिच्छेद ] कुसुमकुमारी vu करिए कि, जो मैं कहंगी. उसे आप जरूर करेंगे?" ___ बसंत," बिना यह समझे कि तुम क्या चाहती हौ, मैं क्यों कर वादा करूं? अगर तुम्हारा कहा मैं न कर सका, तो?" कुसुम,-"आपकी जान से बढ़कर भी कोई चीज़ है ? फिर जब उसीको आप मेरे लिये देचुके थे, तब अब एक जरा सी मेरी वाहिश पूरी करने के लिये इतना आगा-पीछा क्यों करते हैं ? बसंत,-"मैंने जान केवल तुम्हारे ही लिये नहीं दी थी,और सच तो यों है कि तब तक मैंने तुम्हें देखा भी न था; क्योकि डोंगी उलटते ही एकाएक मैं पागल की तरह जल में कूद पड़ा था; परन्तु धन्य है, जगदीश्वर कि उसकी अपार दया से एक की जान मेरे हाथों से बच सकी। कुसुम,-" तब यह तो आप जरूर ही मानेगे कि मेरी जान को आपके हाथ ले बचाना नारायण को मंजर था ?" बसंत,-"बेशक, बेशक! कुसुम,-"तो अब यह भी आपको मानना पड़ेगा कि दुबारे मेरी जान के लेनेवाले भी आप ही होंगे!" बसंत,-(ताज्जुब से) “इसका क्या मतलब ?" इसपर कुसुम ने एक कटार निकालकर, जो कि मेले में खरीदी गई थी, भर-ज़ोर अपनी मुट्ठी में पकड़ी और तब बसतनुमार की ओर देखकर कहा,-"क्यों साव! अगर मैं इस कटार को अपनी छाती में भारकर मरजाऊं, तो कैसा ?" वसतने घबराकर उसका हाथ पकड़ना चाहा, पर वह ज़रा पीछे हट गई और बोली,-'बस, खबर ! अगर जरा भी आपने कटार छीनने का कस्द किया तो यह मेरे कलेजे के पार ही नजर आएगी!" बसंत ने घबराकर कहा,-"अरे, यह किस लिये!" कुसुम," इसलिये कि कहाँ तो आखने मेरी जान बचाई,- और कहां अब मैं एक भीख आपसे चाहती हूं, वह भी आपके दिए नहीं दी जाती तो फिर मैं अब जी ही कर क्या करूंगी?" बसत ने कहा,-" अच्छा, तुम क्या चाहती हो, कहो, पर इतना याद रक्खो कि मैं बहुत ग़रीब और मामूली आदमी हूं।" कुसुम, "अभी आपने मजिस्टर-साहब से मेरी जिमीवारी का हाल सुना है न ? बस, जान लीजिए कि मुझे दोलत की रत्तीभर भी
पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/२०
दिखावट