पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/२१

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[ चौथा
स्वर्गीयकुसुम

स्वर्गीयकुसुम [चौथा पर्वा नहीं है; सो, मैं आपसे एक फूटी कौड़ी भी नहीं चाहती; किन्तु हाँ ! एक चीज़ अवश्य चाहती हूँ, जिसके बिना इन्सान का जीले के बनिस्वत मरजाना कडोर दर्जे अच्छा है। इसलिए, सुनिए, वह चीज़ आप खुशी से देसकेंगे, क्यों कि उस चीज़ के बिना जिन्दगी बिल्कुल वेलज्ज़त और फजल होजाती है। बेचारा बसंतकुमार कुसुमकुमारी की अजीब बातों से हक्का- वका सा हो, उसके मुंह की ओर निहारने लगा और बोला,- " अच्छा, अब दया करके कटार तो रक्खो,-और सुनो ! तुम मुझसे जो चाहोगी, वह मैं दूंगा।" कुसुम,-' यों तो तब तक अब यह कटार हाथ से रक्खी जाती नहीं, जब तक कि आप उस चीज़ के देने की कसम न खा लें।" वसंत,-"अच्छा, मैं गंगा की गोद में बैठकर प्रतिज्ञा करता हूं कि जो चीज़ तुम मुझसे चाहोगी, उसे अगर मैं देसकता होऊंगा, तो तुम्हे ज़रूर दूंगा।" कुसुम,-"यों नहीं, इसे यों कहिए कि ज़रूर दूंगा।" बसंत,-" और अगर न दे सका, तो?" ___कुसुम,-" तो यह लीजिए,"-बों कहकर उसने कटार को अपने कलेजे पर रक्खा यह देख बेचारा बसतकुमार चिल्ला उठा और घबराकर बोला,- " हाय, कैसी आफ़त है ? अच्छा मई ! जो तुम चाहोगी, वही मैं दूंगा, इस बात की कसम खाता हूं।" यह सुनते ही कुसुमकुमारी ने अपने हाथ की कटार गंगा में फैकदी और बसंत के पैरों पर गिर, और उसका पैरथामकर बोली- " प्यारे, यह दासो आज आपके सरन में आई, इसलिये अपनी प्रतिज्ञा को याद करके अब जीते जी इसे अपने चरन से अलग न करिएगा।" यह सुन बसंतकुमार ने उसे उठाकर गले लगाया और कहा.- "प्यारी, कुन्तुम तुम-सी त्रैलोक्यमोहिनीसुन्दरी जिसपर रीझे उस आदमी से बढ़कर संसार में दूसरा 'कौन भाग्यवान होसकता है ! बस इतनी ही बात के लिये तुम भैरवीधनी थी ?" कुसुम -"हां प्यारे । यह क्या थोडी बात है। प्रेमरूपी राज्य कालेना इसीखेल नहीं है इसलिये इस राज्य पर फतह पाने के