पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/२०७

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स्वगायकुसुम । (पचासवा हम देखा चाहते हैं कि आपका बज्रहदय धाचि' के क्रिस अङ्क के हाड़ से बिधाता ने गढ़ा है ! हा, खेद् ! भला हम आपसे यह पूछते हैं कि कुसुम या बसन्त ने धर्म, कर्म, संसार, समाज, लोक, परलोक, देश, बिदेश, या किसी बियोगान्तप्रेमी व्यक्तिविशेष का क्या बिगाड़ा है कि ये दोनों यो संसार से निकाल बाहर किए जायं, और जिन अर्थपिशाच नराममों से धर्म, कर्म, संसार, समाज, देश, विदेश, और व्यक्तिविशेष का सत्यानाश होरहा है, वे दुराचारी लोग मूछों पर ताच फेरते हुए दूसरे मार्कण्डेय बनकर दीर्घजीवी हो ? हा, धिक !!! इसलिये वियोगान्त के प्रेमियों से हमारा यह प्रश्न है कि,- "आप बतलावे कि, 'वियोगान्त वर्णना' किसया कैसे स्थल-विशेष में वर्तनी चाहिए?' यदि आपलोग कृपाकर इस निगूढ तत्त्व को हमारे हदय में प्रवेश कराने में समर्थ होगे, तो आगे से हम आप ही के बतलाए हुए मार्ग को ग्रहण करेंगे: किन्तु जब तक आप- लोगों का मत हमारे जी में न फंसेगा, तब तक हमारा ही मतहमको माननीय रहेगा! बस, प्यारे, वियोगान्त के प्रेमियों ! आप अब इसे पढ़ना बल कीजिए,--- और प्राणप्यारे, संयोगियों, या संयोगान्त-बर्णना के प्रेमियो! आप लोग क्यों उदास होने लगे? घबराइए मत, कुसुम,या बसन्त का कुछ भी नहीं होसकता; क्योंकि जब बसन्त साक्षात् ईश्वर का दूसरा रूप है,-"ऋतूनां कुसुमाकर:-तब फिर नाम के नाते से कया कुसुम और बसन्त का विनाश कभी होसकता है ? कभी नहीं! तो फिर यह भी निश्चय ही जानिए कि तब गुलाब की याड़ी भी खिलेगी, पर नई दुनियांवालों की नई युक्ति से अब उसमें कोटे नहीं निकलेंगे!!!