पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/२०९

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२०० स्वगायकुसुम। (इक्यावना .xn--- - --- कुसुम,—(कुछ सोचती हुई) "तुम कौन हो ? " गुलाब,-" तुम्हारी लौंडी, गुलाब !" कुस म ऐसा जवाब सुनकर सन्नाटे में आगई! फिर जरा ठहर कर बोली,- बहिन, गुलाबदेई!" गुलाब,-५ हां! जीजी! " क सुम,-" मैं तेरी जीजी कैसे हुई ?" गुलाब,- यह तो तुम्हीं जानी !" क सुम,-" आखिर तूभी तो कुछ बता ? " गुलाब,-"तुम बड़ी हो, इसलिये जीजी हो।" क सुम,--" अह ! यह तो एक दुनियां का दस्तूर है कि छोटी सौत अपनी बड़ी सौत को "जीजी” कहा करती है। गुलाब,-"लेकिन, मैंने तुम्हारी चिट्ठी पढ़ी है, उसमें तो तुमने मुझे अपनी सगी बहिन बतलाया है ?" क सुम,-" क्या वह चीठी तैने पढ़ी है ?" गुलाब,-" हां, जीजी !” क सुम,-" उस चोठी से तू क्या समझी?" गुलाव,-" समझी तो मैं क छभी नहीं; पर इतना मैंने निश्चर कर लिया कि,-'जव कि तुम मुझे अपनी छोटी बहिन बनना रही हो, तो मैं जरूर ही तुम्हारी सगी बहिन होऊंगी।" क सुम,- तैने उस चीटी के रहस्य को बातें उनले नही गुलाब.-" नहीं।" हा! बेचारी क स म ने गुलाच से ऐसा मीठाजवाब कभी नहीं पाया था! यदि पाप होती तो वह संखिया ही क्यों खाती! उसने फिर पूछा,.-वे कहां है?" इतने ही में बसन्त आ, और "प्यारी, प्यारी ! कसम!" इत्तन कह उसके पैताने बेहोश होकर गिर पड़ा! कसम भी,-" हाय, यह क्या हुआ ?" कह कर उठने लगी पर कमज़ोरी और दुःख के सबब से खाट पर गिरकर बेहोश होगई । गुलाब ने चट बसन्तक मार को होश में लाकर नहांसे दूर हटाय और क स म को भी होश कराया। उसी दिन एक और विचित्र घटना हुई