परिच्छेद ) कुसुमकुमार।। र बावनवां परिच्छेद, भाई का पत्र " वृत्तान्तं यस्याsaनं. नान है ! गोमहर्षणम् । अन नव विध्य, विचित्रमिदमद्धतम् ।” (पापुराणे) हार से कुसुम और गुलाब के मगे भाई अनूपसिंह का विभेजा हुआ एक मकार का पहुंचा । बसन्तकुमार को तबीयत बहुत बीमार थी, इसलिये सवार ने चिट्ठी "जनाने में गुलाबई के पास भेजदो । वह चिट्ठी गुलाश देई के नाम की थी, इसलिये जलने वह चिट्टी खोल कर बढ़ी और सापही आप कह उटी, हाय! अफसोस !!" उस चिट्ठी में क्या लिख था. उसमा सुन लीजिए.-. सरनूपसिंह ने गुलाम को यो लिया था,- "प्यारी बहिन गुलाब "पूज्यपाद श्रीपिताजी के बचने की कोई आशा नहीं है, घे नुन्हे देखा चाहते है। इसलिये जहातक होमके, नुम जल्द आओ। एक वात तुमस और कहने की है, वह यह है कि जीजी कुसुमकुमारी तुम्हारी और इमारी महोदना बहिन है । इग्न बारे में शायद तुम कुछ भी न जानती होगी, इसलिये इस विचित्र वान को सुनकर चिहुँकना मत ! बात यह है कि इस रहम्य की मारीचाने या तो तुम मेरे जीजाजी (बसन्तकुमार ) से पूछ लेना, या यहां आकर मुझसे सुनना । बस, तुम अभी इतना ही जान रक्खो कि, 'जोजों कुसमकुमारी तुम्हारी और हमारी सगी बड़ी बहन है। उन्हें श्रीपिताजी ने बड़े आग्रह से बुलाया है, इसलिये तुम जॉजो कुलम- कुमारी को अपने साथ ज़रूर लेनी भाना. इसमें गालन ज़रान करना; क्योंकि श्रापिताजी की ऐसी ही माशा है । तुम्हारा प्रागमाई. जनूग -
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