पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/२१४

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परिच्छेद) कुसुमकुमारा। २०५ उसे तुम झटपट मान लो; नहीं तो हम दोनों अभी अपने अपने कलेजे में छुरा मार मरेंगे !" कुसुम,--(हैरान होकर) "प्यारी, गुलाव ! तू क्या कहती है !" इतने ही में हुलामी ने गंगाजली लाकर कुसुम के सामने धरदी और गुलाब बोली,-"बस, जीजी ! अगर दोदा जाने लेनी तुम्हें मजर न हों तो, बहिन : गङ्गाजली उठाकर, जो मैं कहूं. उसके करने की तुम कसम खाओ।" कुसुम,-(मुस्कुराकर और बसन्त की ओर देखकर "क्यों साहन ! यह क्या नाव-वाला बदला मुझसे लिया जाता है ?" वसन्त,--"जीहां, हुजर,अब आया आएकी ममक के बीच में ?" कुसुम,-(गङ्गाजलो उठाकर गुलाब से) "बाल, री गुलाब ! तू कहती चल और मैं कमम खानी चलं: जिसमें यह बखेड़ा जल्द तय होजाय।” गुलाक,'एक तो यह कि अर कभी भी तुम किसी तरह की भी "आत्महत्या करने का इरादा न करेगी। कुसुम,-(कसम खाकर ) "और बोल ?" गुलार,-"दूसरे यह कि मुझे सदा अपनी लौंडी की भांति ही समझोगी और की मेरी नालायकी पर ध्यान न दोगी।" कुसुम.-(कसम खाकर )"चर, और बोला " गुलाब, नीमरे यह कि अर मुझे की भी जीते दम तक न भूदोगी और जब मैं कहर न जाऊगा तब चार दिन एक ही जगह रहोगी, प्रधान एक ही घर में साथ ही रहोगी।" कुसुम,- कमर वाकर) अच्छा, और बोल" यह सुन गुलाब हुग दूर फेंकर कुसुम के पैरों पर गिर पड़ी और गकार गाली.-"यस, अछ कुछ नहीं!" यह देव कुसुम ने गुलाब को उठाकर गले से लगाया और बडी मुहब्बत के साथ उसके गालो को चूम लिया। अब चमन्तकुमार की पारी आई और उसने मी रा नानकर गुलाब से कहा.---"प्यारी ! सब एक बाद की तुम भी कसम स्त्राओ. नहीं तो मैं अभी अपना देर किप देता हूं!" गुलाब (गङ्गाजलग उठाकर)"जल्न पहा । " वसन्त अब तुम अपन जानत में कमा भी एसा का काम