पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/२१७

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२०८ स्वर्गीयकुसुम। ( पचपनको करके सौ रुपए महीने की आमदनी का एक गांव उसके नाम लिख गए थे! यह बात भी अनूपसिंह ने कुसम को समझा दी थी कि, 'अयसे हम बराबर सच्चे जो से तुमसे वहिन का सा बर्ताव रक्खेगे!' इस पर कुसुम ने बहुत से उन पेश किए गर अन्त में लवकी यही राय ठहरी कि, कुसुम के साथ जो कुछ वर्साच रक्ला जाय, वह गुप्त रीति पर,' चोकि इसके जाहिर करने की अब कोई आवश्यकता नहीं है !' यद्यपि पिता के शोक से कुसुम बहुत ही दुःखी हुई थी, परन्तु उसकी छोटी सी भाचन ने अपनी दोनो ननदों को ऐसे प्यार से रक्खा और उन दोनों के साथ ऐसे मजो में दिन बिताना शुरू किया कि कसुम के जी से पितृशोक की ज्वाला धीरे धीरे ठंढी होने लगी। यहां पर इतना और समझ लेना चाहिए कि अनूपसिंह की स्त्री पर भो कुसुम की जीवनी का सारा रहस्य प्रगट कर दिया गया था। पहिले तो कम म ने पिता के दान लेने से इनकार किया, पर जब अनूपसिंह बहुत ही उदास होने लगे तो उसे चुपचाप वहादान लेही लेना पड़ा; पर कुछ दिनों के बाद उस इलाके को कुतुम ने गुलाबदेई के नाम लिख दिया! बसन्तक मार तो मासिक श्राद्ध होने पर आरे लौट आया था, पर गुलाबदेई और कुसुमकुमारी को अनूपसिंह ने बड़े आग्रह से अपचे यहा रख लिया था। ये दोनों साल भर तक वहीं रही, और कर्णसिंह के वार्षिक श्राद्ध हो जाने के बाद आरे आई। हां! इतना अवश्य होता था कि महीने, दूसरे महीने, बसन्तकुमार सुसरार जाकर अपनी दोनों प्यारी स्त्रियों से मिल आया करता था। ___ इसी बीच में एक दिन अनूपसिह ने क स म पर वह बात भी जाहिर करदी थी कि, 'मैंने उस दिन छिपकर वे सारी बातें सुन ली थी, जो कि बाबूजी (कर्णसिंह ) के साथ तुम्हारी हुई थी। निदान, कर्णसिंह का वार्षिक श्राद्ध होने पर दोनों बहिने आरे लौट माइ थीं और एक ही घर में साथ हो रहन लगी थीं