परिच्छेद) कुसुमकुमारो। २१३ सुन तो सही।" यह सुनकर गुलाब पास आई । वस नट कम म ने उसके दोनों हाथ पकड़ कर अपनी गोद में उसे लिटा लिया और लड़कों की ओर इशारा किया ! जब तक लड़के उस पर टूटें. इसने ही में बसन्त- कुमार ने एक टूक लाडू, उसके मुहं में सकर एक कहकहो लगश्या! उसे हंसता देख सब लडके ताली पांद पीट कर हंसने और नाचने लगे ! फिर सभोंने लड्डू के चूर धत्तों में सं बटोर -बटोर कर गुलाब के ऊपर ग्लूच ही बर्माया : वेचारी गलाच मन ही मन कसम की थडाई करती. ऊपर से भुनभुनानी, नाक-भौं मिकड़नी, लड़कों को झिड़कती और खुदक सम की झिड़की भी खाती जाती थी : राम राम करके जमने क म म से अपना पीछा छुडाया! ___यह तो एक दिन का हाल हमने लिखा है, पर प्रेसी लीला तो रोज ही हुआ करता थी! यह तो नम था कि, दिन को, या मात को, जब कुसुम खाने चैटती ना लड़कों को पाम वैटो लेती थी। उस समय बड़ा आनंद होता था ! कोई मुह मे गल्सा डालकर थाली में उगल देता, कोई सामग्री उठा कर थाली के बाहर धरती में गिराता, कोई जमीन में फेंके हुए पदार्थ को उठा कर फिर थाली मे रखता! किमीकी नाक बह कर थाली में टपकती, कोई थाली ही में लार ग्रहाना, कोई खाने खाते थूक सरकने से खांसते खांसते शाली ही में उगल देता. कोई अपने मुहं का निवाला निकाल कर कुसुम के मुहं मे देना, और कोई कुसुम के मुहं मे अंगुली डाल उसके निघाले को निकाल अपने मुह में डाल लेता, कोई आप सारे अदन में लीपापोती करता और कोई कुसुम को सिर से पैर तक जूठे से नहला देता था! ___यह दशा देख वसन्त और गुलाब कुसुम पर हंसते, पर इससे जो मुख कुसुम को मिलता, उसका सपना भी की गुलाब या बसन्त ने नही देखा था! __ यदि कभी ऐसा भी होता कि किसी समय से कुलम बों के साथ बैठकर न खा सकती, या मांदी-दुखी हो जातो, तो बसों को बड़ी दुर्दशा होती! क्योंकि उन सभोंकी अपने साथ न तो असाल ही बैठा कर खिलाता था, न गुलाबही बस, बच्चे रोते और कुम्न फ बिना साथ मैठे एक तरह स भूखे ही र६ मान धे कुसम
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