स्वगायकुसुम [पाचवा अवश्य थी और उसी कृपा के कारण वह इतनी दौलत दूसरों से पैदा कर सकी थी और गांव-इलाके-वाली भी हुई थी। इसका कारण यह था कि बड़े बड़े ज़िमीदार लोग बाबूसाहब की उस पर कृपा देखकर नाच-महफ़िल में उसे पहिले बुलाते थे और वह भी ऐसी खूबसूरत और चालबाज़ थी कि लोगों का दिल अपनी मुट्ठी में करके खब माल झंसती थी। निदान, कुसुम भी दिन पाकर अद्वितीय सुन्दरी, गाने-नाचने में बड़ी चतुर और लोगों को मोह लेने और माल ठगने में अपनी मां से भी बढ़ी-चढ़ी निकली, जिसके लिये लोग यों कहतेथे कि,-- "मन हरिलेत जहान कों, अवहीं तें यह नार । जोबन आएं, कौन को, का करिहै ? करतार !(१) मां के कामकाज से छुट्टी पाकर वह गबूकंवरसिह से मिली। बाबूसाहब ने भी उसकी मां की अकाल मृत्यु पर खेद प्रगट किया और उसे ढाढ़स देकर विदा किया। उनके यहां जो चुन्नी के एक लाख रुपये जमा थे, उनका काग़ज़ कुसुम के नाम कर दिया गया। अबसे कुसुम जो कुछ काम या गांव-इलाके का कारवार करती, वह चिल्कुल बसतकुमार की ही राय से करती थी; बरन यो सम- झना चाहिए कि अब सारा काम बसंत ही करता था और कुसुम आंख बंद करके कागजों पर सही भर करदेती थी। रात के नौ बजे होंगे, ऐसे समय में अकेली कुसुमकुमारी अपने सजे हुए कमरे में मसनद पर लेटी हुई तरह तरह के सोच. विचारों में डूबी हुई थी कि उसके ध्यान को एक करुणाभरी आवाज़ ने अपनी ओर खेंच लिया, जिसे सुनते ही उसका ध्यान उस आवाज़ की तरफ़ गया और वह इस आवाज़ पर गौर करने लगी; किन्तु बसंतकुमार ने आकर उसका ध्यान भंग कर दिया और उसने बड़े प्यार से हाथ पकड़कर बसन्त को अपनी बगल में बैठा लिया। meetim~- (१) " इदानीमेव सा तन्वी जहार जगताम्मनः । न जाने यौवनारस्से कस्य किंवा करिष्यति।" (सक्ति)
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