एक चक्र का जैसा चिन्ह है, वैसा ही चिन्ह इस लड़की की बांई ओर बगल के नीचे भी है। राजा को संतति नहीं होती थी, तब उन्होंने यह मन्नत मानी थी कि पहिले जो संतति होगी, वह जगदीश को भेंट की जायगी; इसलिए यह लड़की उन्होंने जगदीश को चढ़ाई।"
इस लेख को पढ़कर बसंतकुमार ने उस चांदी की तखती की पीठ को उलट कर देखा तो उसकी पीठ पर एक चक्र का चिन्ह बना हुआ दिखलाई दिया, जिसे देखकर उसने कुसुम से पूछा:- "क्या, ऐसा ही निशान तुम्हारी बगल में भी है ?" कुसुम,-"हां, हैं; इस निशान पर मेरा ध्यान तब गया था, जब कि मैंने इस भोजपत्र को पढ़ा था।" यह कहकर उसने अपनी नीमास्तीन उतारकर वह निशान वसंत को दिखलाया और कहा,-"पर इस तखती की इबारत मुझसे नहीं पढ़ी गई कि इसमें क्या बात लिखी है !" बसंत,-"अच्छा, ज़रा मैं इसे गौर से देखूं तो सही कि यह पढ़ी जाती है या नहीं! " यह कहकर वह एक घंटे तक गौर से उस तस्रती को देखता रहा, फिर एकाएक फड़ककर बोल उठा,-" लो, प्यारी ! मैंने इसे पढ़ डाला! पर, वाह ! ये अक्षर शायद यंत्र के किसी खास नियम के अनुसार रक्खे गए हैं!" यो कहकर उसने कसुम को उन अक्षरों का क्रम समझा दिया और कुसुम ने उस इबारत को पढ़ और बसंत का मुहं चूमकर कहा,-" क्यों न हो! मैंने तो तुम्हें रतन समझकर ही अपना दिल दिया है, कुछ पत्थर समझकर नहीं ! वाह, प्यारे! खुद पढ़ा! अलबत्ते, तुम्हारी जहां तक तारीफ़ की जाय, थोड़ी है। हमारे प्यारे पाठक यदि उस तखती का नमूना देखना चाहें तो देखलें, हम उसकी नकल नीचे लिख देते हैं। पर इसकी इवारत के पढ़ने का क्रम हमसे न पूछकर पाठक लोग खुद उसके समझने की कोशिश करें। हाँ! इतना इम अवश्य कहदेते हैं कि ये अक्षर किसी खास नियम के अनुसार ही भरे गए है