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पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/३३

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[सातवां
स्वागीकुसुम
वह यंत्र यह है -

स्वगीयकुसुम वह यंतर

ने कहा,-" वह पंडा भी बड़ा ही पाजी था, कि जिसने पत्र में अपना नाम तक न जाहिर किया!" न,-" लेकिन, अगर इन्साफ़ किया जाय तो उस बेचारे ने जान में मुझे एक रानी के सुपुर्द किया था!" त,-" लेकिन, उसने कुछ रुपये तो ज़रूर ही लिए होंगे! -उसे परमेश्वर कभी क्षमा न करेगा, क्योंकि कन्या का पाप है और देवता की सम्पत्ति के देडालने या बेंच- ने का उसे अधिकार ही क्या था?" उसने कहा,–" अच्छा जो कुछ हो; अब मैं अपनी पुरानी का पहिला हिस्सा आज यही पर पूरा करती हूँ ― और मसा, जिसमें कि मेरे जीवन ने एक विचित्र पलटा खाया कहूंगी; क्यों कि रात जियादह जाचुकी है, इसलिए चलो,

―" पर मेरी तो जान इस किस्से के अखीर तक

लिये निकाली जारही है ! ,―(मुस्कुराकर) “घबराओ मत: मेरे रहते, क्या मजाल जारो जान निकल जासके "