नवां परिच्छेद
उस्ताद !
"खला सक्रियमाणोऽपि ददाति कलहं सताम् ।
दुग्धधौतोऽपिकि याति वायसः कलहंसताम् ।।
(दृष्टान्तसमुच्चयः)
तने ही में फिर एक टहलनी ने आकर डरते-डरते कहा,- सरकार ! उस्तादजी आए हैं।" "आने दे"-यों कहकर वह बीन मिलाने लगी और उस्तादजी के आने पर उन्हें सलाम करके बोली- "आओ, उस्तादजी ! आज कई दिनों पर किधर भूल निकले!" वह उस्ताद जान का कत्थक था और उसका नाम झगरू था; उसने बचपन से कुसुम को तालीम दी थी। मो, कुसुम का सवाल सुनकर उसने रुखाई के साथ कहा,-"बेफ़ायदे आकर क्या करू, बेटी! जबसे चुन्नीवाई मरी हैं, तब से तुम्हारा रंग-ढंग ही दूसरा हो रहा है ! अब न तो कोई सार ही तुम्हारे डेरे पर आने पाता है और न तुम्ही किसी अमीर-उमरा से मिलती-जुलती हौ न डेरे ही पर मुजरा-उजरा करती हो और न कहीं का बोड़ा ही लेती हो तो अबकि तुमने इस पेशे हो से अपने तई हटा लिया, तब यहां मेरे आने की क्या जरूरत है?" कुसुम,―“ठीक है, मगर मैं तो तुमसे कह चुकी हूँ कि जब तक मेरी जिंदगी है, तब तक तुम्हें बराबर हर-महीने पन्द्रह रुपए मिला करेंगे: फिर तुम नाराज क्यों होते हो?" उस्ताद,-" मगर, बेटी ! यह क्या अच्छी बात है ? देखो,-'जो काछ काछा. सो नाच नाचा' तुम्हारी जमी हुई दूकान है, ऐसी तो बड़े भाग से किसी की जमती है; पर न जाने तुम्हारी समझ को क्या हो गया कि नुम रानी से फकीरिन बनने पर उतारूहुई हो! ऐसा बैराग तो कहीं नहीं देखा!" कुसुम- (मुस्कुराकर) “उस्तादजी! आज कल मेरा माथा खराब हो गया है। उस्ताद,―"इसमें मी कोई शक है। अच्छा, सुनो अब-प्रबलाक