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[ ग्यारहवां
स्वर्गीयकुसुम


लोग मेरी भलाई चाहते हैं तो मुझे एक नज़र उन्हें दिखला दीजिए और जरा देर के लिए उनके पास लेचलिए । आप सच जानिए कि मैं आपके कहने के मुताबिक ज़रा सा ओठ भी न खोलूँगी।" डाकृर.-" मगर मुझे आपकी बातों पर यकीन नहीं होता कि आप रोगोकीहालत देखकर चुप रह सकेंगी क्यों कि अजब नहीं कि आप उसकी हालत देखते ही तड़पकर उसीके ऊपर गिर जाय ! " कुसुम, (रोकर) आपलोग बड़े निर्दयी हैं ! " डाक्टर, कभी नहीं, बल्कि आपके सच्चे हितू हैं।" कुसुम,-" तो, मुझे ले चलिए!" डाक्टर,-" अभी नहीं।" कुसुम,-( बिगड़कर )" आप मुझे रोकनेवाले हैं, कौन ? मैं खुद वहां जाती हूं, देखें, मुझे कौन रोकता है ? " डाक्टर,-" मैं रोकूँगा।" कुसुम,---(क्रोध के मारे भभक-कर) " तुम हो, कौन ? अभी मेरी ड्योढ़ी के बाहर चले जाओ!" डाकृर,-"बहुत खूब ! मैं आपके सामने से हट जाता हूं, मगर उस रोगी के पास से तब तक न हटूंगा, जब तक कि बाबसाहब की आज्ञा न होगी; और तब तक आपको भी उस रोगी के पास न जाने दूंगा।" कुसुम,---.." देखो, मैं जाती हूं कि नहीं?" यह कहकर उसने भैरों सिंह की ओर देखा, पर वह वहांसे द्वार के आते ही धीरे से सरक गया था। यह देख कुसुम ने चिल्लाकर उसे पुकारा, पर वह था कहां, जो जवाब देता, या सामने आता! यहा तक कि कुसुम ने अपने सब दाई-चाकरों का नाम ले- ले कर पुकारा. पर किसीने जवाब तक न दिया, आना तो दूर रहा! ___यह हालत देखकर उसने डॉक्टर की ओर घूरकर और गुस्से से लाल होकर कहा,-" यह क्या बात है ? मेरे सब नौकर मर गए क्या? यह किसकी शरारत है ?” डाक्टर,-" यह जो कुछ होरहा है, वह सब बाबूकुंवरसिंह के ही हुकम से क्यों कि वे अपनी प्रजा का पालन बेटे की तरह करते हैं। बस, आप यह बात सच जाने कि वे अपनी प्रजा की जिसमें भलाई इॉगा वही करेंगे आपके ऊपर उनकी बड़ी दया है, इसो