पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/६

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द्वितीय संस्करण की भूमिका ।

हिन्दी भाषा की सुप्रसिद्ध उपन्यास" नाम की मासिकपुस्तिका में छपकर सन् १६०१ ई० मे यह उपन्यास पुस्तकाकाररूप में प्रकाशित हुआ था। यह पन्द्रहवर्ष की बात है। यह उपन्यास हिन्दी के रसिक और उपन्यास-प्रेमियों को ऐसा रुचिकर हुआ था कि इसकी सब कापिया थोड़े ही दिनो में बिक चुक गई थीं। इसके बाद उपन्यास-प्रेमियों की धडाधड़ मांग पर मांग आने लगी, पर इसका द्वितीय संस्करण हम न निकाल सके; क्योंकि अपने वृन्दावनम्थ मन्दिर के ग्राम के दोघानी मामले में हम ऐसे उलझे हुए थे कि लाचार होकर हमें काशी से वृन्दावन आकर रहना पड़ा और उसी झमेले मे उपन्याम" मासिकपुस्तक का भी प्रकाशन रुक रहा। पर श्रीठाकुरजी की कृपा से अपने ग्राम का मामला हम जीत गए हैं, इसलिये अदालती झंझट से खाली होकर अब हम फिर “उपन्यास' नामक वही सुप्रसिद्ध "मासिकपुस्तक" भी निकालने लगे हैं और इन "कुसुमकुमारी" का दुसरा संस्करण भी छाप डाला है। इससे आशा है कि उपन्यास के प्रेमी पाठक बहुत ही प्रसन्न होंगे और इन द्वितीय संस्करण के"कुसुमकुमारी-उपन्यास" को बड़ी ही रुचि के साथ पढ़कर आनन्द लाभ करेंगे।

पहिले संस्करण मे "कुसुमकुमारी" उपन्यास का आकार तेईस फार्म का था और इसमे कुल "इकतालीस" परिच्छेद थे। परन्तु अब इन द्वितीय संस्करण में इस उपन्यास का आकार "साढ़े अट्ठाईस फार्म" का होगया है और इसमें अबकी बार "सत्तावन परिच्छेद" हुए हैं;--अर्थात् प्रथम मम्कर की अपेक्षा इस द्वितीय संस्करण में अब "साढ़े पांच फार्म" तो आकार की वृद्धि हुई है और सोलह परिच्छेद" बढ़ाए गए हैं।

सुप्रसिद्ध बंगला उपन्यास-लेत्रिक बङि्कमबाबू ने कहा है कि.- 'आकार के साथ ही साथ मूल्य की भी वृद्धि होती है।' इसीसे पहिले संस्करण मे इस 'कुसुमकुमारी उपन्यास" का दाम बारह आने था, परन्तु इसके 'आकार' के बढ़ने के साथ ही साथ इसका मूल्य भी बढ़ाया गया है और अब इस दूसरे संस्करण मे इस "कुसुमकुमारी उपन्यास" का दाम एक रुपया रक्खा गया है।

जो उपन्यास के प्रेमी सज्जन इस "कुसुमकुमारी उपन्यास" की पढेगे वे बहुत ही प्रसन्न होंगे परतु जिन रसिकों ने पहिले