पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/७१

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[ वासवा L 10 ANO बीसवां परिच्छेद प्रेम-पुत्तली! "अनानानं पुष्पं किमलयमलूनं कररुहै. रनामुक्त रत्न मधु नवमनास्वादितरसम् । अखण्डं पुण्यानां फलमिव च तपमनघं , न जाने भोक्तारं कमिहसमुपस्थास्यति भुवि ॥" (अभिज्ञान-शाकुन्तले) सुमकुमारी की बिचित्र प्रेमपत्रिका को, जिसमें शुरू से अखीर तक हरएक शब्द में सच्चा और शुद्ध कु प्रेम-रस भरा हुआ था, और जिसमें से सच्चे प्रेम MIR के अमृत की बूंदें टपकी पड़तो थीं,-पढ़कर 'बसन्तकुमार का शरीर, हृदय, प्राण और रोम-रोम फड़क उठा और वह मारे प्रेम के पुलकित हो कुसुम को गले लगा और उसके गालों को बड़े प्यार से चूमकर कहने लगा,- "आहा, प्यारी ! इस पत्रिका ने तो सचमुच मुझे अपना जर-खरीद गुलाम बना लिया! प्यारी, प्यारी, मेरी प्रानप्यारी ! ऐसा अजीब और दिल को फड़का-देनेवाला प्रेम तुमने कहांसे सीखा! आहा ! प्यारी! तुम्हारी ही चाह सच्ची है और दुनियां की सभी प्यार-करनेवालियों की सिरमौर बनने लायकभी तुम्ही हो!" कुसुम ने भी बसन्त को गले लगाकर उसके चुम्बन का बदला चुका लिया और हँसकर कहा,-" बस, बस, बस, अब रहने दो और ज़ियादा खुशामदी बातें न बनाओ!" बसन्त,-"नहीं, प्यारी ! इस वक्त मैं खुशामदी या बनावटी बातें नहीं करता, बल्कि सञ्ची बातें कररहा हूँ कि,इस फड़कती- दुई " प्रेमपत्रिका " ने मुझे सचमुच मोह लिया ! प्यारी, तुम धन्य हो और तुम्हारा ही चाहना सचा है। कुसुम मे सबै अनुराग से बाग-बाग होकर कहा, “यस, बस,