पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/७७

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स्वर्गीयकुसुम। (बाईसा बाईसवां परिच्छेद. मन विवाह “त्यं मे भार्या प्रिया नित्यं, त्वं मे नित्यं प्रियः पतिः। यत्रेन्थं कथनं सोऽयं, गान्धर्व इति कथ्यते।" (विवाह-विवेके) PARस तरह आपस में सलाह कर के कुसुमकुमारी वसन्त को पक सजे हुए कमरे में ले गई, जो इत्रों और फूलों की उमदा खुशबू से भरा हुआ था और कई साजमिले हुए SENAMENT करीने से एक तरफ रक्खे हुए थे। वहां जाकर उसने बड़े प्यार से बसन्तकुमार को मसनद पर पैठाया और उसके बगल में खुदबैठकरायों कहा, "अथ कहो, प्यारे ! गान्धर्व-विवाह में किन किन चीजों की जरूरत हुआ करती है ?" बसन्तकुमार ने मुस्कुराकर कहा,-- केवल पवित्र मन और सत्य वचन की!” कुसुम,-" अस, इतना ही !" बसन्त.-"हां, इतनाही; यह बड़ा उत्सम विवाह है और पुराने समय में इसका बहुत प्रचार था; पर समय के फेर से इस देश की जहां और और बातें जाती रहीं, वहां इस विवाह का भी चलन बन्द होगया। मुसलमानों का निकाह और अगरेजों का ख्याह इसी गान्धर्व विवाह की कुछ कुछ नकल है । इस विवाह मे वर्ष, अयन, मास, पक्षत, तिथि, वार, नक्षत्र, योग, करण, लग्न, मुहर्त आदि किसी की भी आवश्यकता नहीं पड़ती और इसी विवाह के लिये महर्षियों का वचन है कि ' विवाहः सार्वकालिका यद सुन कुसुमकुमारी बहुत ही खुश हुई और कहने लगी,- नी, प्यारे ! पवित्र मन और सत्य बचन की तोन तुम्हारे ही पास कमी है, न हमारे पास.-परन्तु फिर भी आपस में अंगूठी और माला की बदलौवल भी मैं किया चाहती है।" यो फरफर ससने एफबम्स मालफर उसके अन्दर से एक हीसी