R स्वगायकुमुम। (भाबासी volvvvuu... rrorani THATTA HAIPol MHIAur CALKARO Cw SINYSANSANSANS चौबीसवां परिच्छेद, और फिर यह क्या !!! "खला विवेकहीनाच, कुर्वन्ति मलिना कृतिम् । "तथैव विमलं कर्म, साधवः समदर्शिनः॥ (व्यासः) XXXच भैरोसिंह बत्ती बुझाकर हम्माम से बाहर हुआ और तर चारो ओर देखकर चुपचाप बाग़ की दीवार लांधकर बाहर हो गया! यह सब हुआ, पर न तो किसी दाई चाकरों ने जाना कि मियां-बीबी किधर गायब हुए, और न यही जान पड़ा कि भैरोसिंह ने यह क्या किया, और क्यो जीते जी कुसुम और बसन्त को कत्र में टस दिया !!! कुसुम के बाग से निकलकर भैरोसिंह तेजी के साथ पैर बढ़ाता हुआ उस झाड़ी में पहुंचा, जहां पर एक दिन बसन्तकुमार मुर्दे की हालत में पाया गया था। वहां पर दस-बारह आदमी हर्बे-हथियारों से लैस बैठे हुए थे। भैरोसिंह के पहुंचते ही उन में से एक ने उठकर जल्दी से पूछा,-"कहो, सब ठीकठाक है न ?” मेरोसिंह,-"आप जानते ही हैं कि भैरोसिंह जिस काम में पैर रखता है, उसमें नाकामयान कभी होता ही नहीं।" वही आदमी जिसने भैरोसिंह से अभी सवाल किया था, या जो इस गरोह का सार मालूम होता था, बोला,-"तो तुम्हारा इनाम भी, जितना कहा गया है, उसका दूना मिलेगा, मगर अभी नहीं जब मैं उस पाजी लौंडे को मारकर कुसुम को अपने अड्डे पर लेभाऊगा, तब तुम्हारा इनाम दिया जायगा।" भैरोसिंह,-"मगर, साहब! बाप अपने एकरार से ज़रा चूकते हैं। घादा तो यही न था, कि बाग़ में जाकर सब ठीक-ठीक खबर लाने और आप को वहां पहुंचा देने पर मैं दो हजार रुपए की थैली पाम!" सार, 'ठीक है, मगर अब यह सलाह हमार साथियों को
पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/८१
दिखावट