पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/८८

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परिच्छेद) कुसुमकुमारी। छब्बीसवां परिच्छेद, यह लड़की देवी है !

महानुभावा मृदुलस्वभाधा,

साध्वी सदाचाररता मनोज्ञा । शुचिविनीता मितभाषिणी था, शान्ता लशीला गृहिणी हि देवी॥" (भामिनी-भूपणे) MOVIEसी दिन दो पहर के समय, जब कुसुमकुमारी खाने पीने से छुट्टी पाकर अपने बाग-वाले कमरे में बसत कमार के साथ बैठी बैठो गप्प हांक रही थी, एक टहलनी ने आकर खवर दो कि,-"भैरोसिंह हाजिर यह सुन कुसुम और बसंत, दोनों करीने से बैठ गए और तक भैरोसिंह के हाज़िर होने का हुक्म दिया गया। यहां पर इतना हमारे पाठकों को और समझ रखना चाहिए कि इस हम्माम-वाली सुरंग का हाल कल के पहिले कुसुम को कुछ भी मालूम नहीं था । बस, इसी भेद के बतलाने और वहांसे चुप- चाप कुसुम की राल देने के लिये ही भैरोसिंह कुसुम से अकेले में मिला था और उसने उसे उस हम्माम में ले जाकर वहांकी सुरंग का सारा भेद बतलाया था, जिसे उस समय के पहिले कुसुम कुछ भी नहीं जानती थी। फिर भैरोसिंह ने उन पाजियों को उसी सुरंग में फांस कर के खुद सुरंग से बाहर निकल और बाग के सब नौकर-चाकरों को बटोर कर बहुतों को कुसमके घर भेज दिया और बाकी लोगोंको यह समझा दिया था कि, 'कोई भी आज को रात को कुसम का यहां रहना या यहांसे यकायक गायब होना किसी पर ज़ाहिर न करे।' इन सब कामों से छुट्टी पाकर पहिले उसने चावू कंवरसिंह से इस वादात या स्वशखमरी की खबर की थी और घहासे साहस मजिस्ट्रेट के नाम की मिट्टी