स्वगायकुसुम । (उदोसवा लेकर, जिसमें यह लिखा हुआ था कि, 'यह लड़की कचहरी तक न घसीटी जाय, ' साहबमजिष्ट्रट से मिलकर इस अमर को इत्तिला की थी और साहब के आने के साथ ही साथ कुसम और बसत को भी बाग में लाकर मौजूद रक्खा था। भैरोसिंह ने आते ही कुसुम के आगे दो हजार की थैली, जो कि कीचड़ में लथपथ थी, पटक दी और कहा,-"मुझे क्या हुक्म कुसुम ने इज्जत के साथ भैरोसिंह को बैठाया और कहा,- "मैंने बहुत सी बातों का भेद जानने के लिये इस निराले और फर्स के वक्त तुम्हें बुलाया है। और सुनो-आज से तुम मेरे यहांकी नौकरी से आजाद किए गए। सो, अब से तुम्हें बराबर घर बैठे एक रुपए रोज मिला करेंगे।" भैरोसिंह,-" मगर, मुझे घर बैठना मंजूर नहीं है, इसलिये अगर आपकी इतनी मेहरबानी है तो मेरेलिये यह हुक्म दिया जाय कि मैं चुपचाप बैठा बैठा आप लोगों की हिफाजत किया करूं और आपके यहांके सब नौकर-चाकरों पर नज़र रक्खें।" कसम,-" अगर तुम्हारी ऐसी ही ख़ाहिशा है तो मुझे यह बात मजूर है। अच्छा, अश पहिली बात तो यह है कि कीचड़ में लथपथ यह तोड़ा कैसा है ?" इस पर भैरोसिंह ने करीमदखश से उसके पाने का सारा हाल कहकर यों कहा,--"उस हरामजादे. बेईमान, पाजी, सूबर के बच्चे से मैंने इतना ठग लिया तो क्या पाप किया ? मगर अब यह आपके आगे है, इसलिये आप जो चाहे, सौ करें।" कुसम,-' ता मैं जो कहूंगी, सो मानोगे ?" भैरोसिंह,-" बेशक, बेशक, फर्माइए ?" कुसुम,-"तो सुनो-इनमें से एक हजार रुपए करीमख्श के घर घालों और एक हजार रुपए झगरू उस्ताद के बाल-बञ्चों को तुम दे डालो, क्योंकि तुम्हें नारायण बहुत कुछ देगा।" भैरोसिंह,-"मैं आपसे कसम खाकर कहता हूं कि यही बात मैंने उससे रुपये ठगतीबार सोच ली थो, लोई आपने भी हुक्म दिया बस ऐसा ही किया "
- जी मोहि