पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/९०

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परिच्छद) कुसुमकुमारी। - - और झगरू के घरवालों के लिये दो हजार रुपये मैं अपने पास से दूंगी; और हां! तुम उन बेचारो के घर-द्वार की दशा की भी जाच करो, जो सात-सात बरस के लिये कैद हुए है । अगर उनके घर में कोई कमाई करनेवाला न हो तो उनके नातेदारो से यो कहदो कि जबतक वे कैद से न छूटेगे, तबतक उन कम्बल्ली के वारिसों की परवरिश यहांसे बराबर होती रहेगी। भैरोसिह.--"मगर, ये ठगी के रुपये मैं नहीं लंगा" कुसुम,-"अच्छी बात है, इन्हें तुम उन दोनों के घरवालो को दे दी. फिर मैं तुम्हें समझा दूंगी।" भैरोसिह,-" तो क्या आप मुझे अपने पास से इसके बदले में कुछ दिया चाहती हैं ?" कुसुम,--"हा; फिर ? तुम इसमे उन्न करनेवाले कौन हो ?" भैरामिह,-"मगर, हुजर ! यह बात भैरोसिह की शान के खिलाफ़ है ! " कुसुम.--( मुस्कुराकर ) रडी के नौकर की शान ही मा" यह बात यद्यपि कुसुम ने साधारण भाव से कही थी, पर मैग- लिह के कलेजे मेमानो यह तोर सो जाकर लगी । वह बोला ता कुछ भी नहीं. पर उस वीर आदमी की आंखें एनीज आई। यह देख कुसुम बहुत ही शर्माई और बोली,-"भैगांसह तुमने मुझे बेटी की तरह खिलाया है और उसी तरह मानते भी हो, इम लिये अगर मेरे संह से तुम्हारी शान में कोई बात खोटी निकल गई हो तो उसे अपनी लड़की की नादानी समझ कर उस पर कुछ खयाल न करो।" अहा! यह सुनते ही भैरोसिंह का चेहरा खिल उठा और उसने मन ही मन यों कहा कि, 'यह लड़की देवी है!' इसके बाद उस दिन नावक्त हो जाने के सबब भैरोसिंह को कुसुमकुमारी ने विदा कर दिया। फिर तो वे रुपये करीमबरूश और झगरू के घरवालो को दे दिये गए और कुसुम ने भैगसिह को उन रुपयों के एवज में कुछ न दिया क्यों कि वह कुछ भी लेना नहीं चाहता था।