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कोड स्वराज पर नोट

कार्ल मालामुद, कैलिफ़ोर्निया, दिसंबर 4-25, 2017

मैं अक्टूबर महीने के अंत में भारत से लौटा। मुझे अपने छोड़े हुए कई काम करने थे। साथ ही यात्रा के दौरान लिए गए नए कामों को भी देखना था। मेरे लिये सबसे महत्वपूर्ण काम था कोर्ट के मामलों पर ध्यान देना। लेकिन सबसे पहले मैंने अपने पसंद का काम किया।

मेरे कार्यालय के बाहर 9 बड़े बक्से रखे हुए थे, जिनका वजन 463 पाउंड था। उन बक्सों के अंदर 312 किताबें थीं। ये वहीं किताबें थीं, जिन्हें लॉर्ड रिचर्ड एटनबॉरो ने 'गांधी' फिल्म बनाते समय इस्तेमाल किया था। उनकी मृत्यु के बाद उनके एक निर्माता ने वर्ष 2015 में नीलामी में ये किताबें खरीदी थी। हाल ही में उन्होंने कॉन्सल-जनरल, राजदूत अशोक से संपर्क साधा और पूछा कि क्या वे ऐसी किसी संस्था को जानते हैं जहाँ ये किताबें उपहार स्वरूप दी जा सकती हैं। राजदूत ने निर्माता को मेरा पता भेजा और अंत में ये सभी किताबें मेरे यहाँ आ गई।

यह संग्रह वास्तव में काफी असाधारण है। एक बॉक्स में फिल्म के शूटिंग स्क्रिप्ट की मूलप्रति, सेट का बजट, कॉल-शीट, और नीलामी घर की रसीद और सूचीपत्र (कैटलॉग) थे। इनमें से कुछ पुस्तकें मेरे पास पहले से ही थी, जैसे प्यारेलाल नय्यर की लिखी हुई, 8-खंड की जीवनी और उनके संकलित लेखों के कुछ खंड। परंतु इन किताबों में नवजीवन ट्रस्ट बुक्स की गांधी जी से संबंधित दर्जनों किताबें थी जिसे मैंने पहले कभी नहीं देखा था।

मैंने उन पुस्तकों में से स्पष्ट रूप से पढ़े जाने वाले 47 पुस्तक को चुना जिन्हें पोस्ट किया जा सकता था। इनमें उद्योगपति जी.डी. बिड़ला और गांधी जी के पत्राचार के 4 खंडों के संग्रह जैसी सर्वोत्तम कृतियाँ थी। जब गांधी जी की हत्या की गई थीं तो वे दिल्ली में बिरला जी के घर में रह रहे थे। वे दोनों 44 साल से एक-दूसरे से पत्राचार कर रहे थे।

मैंने नेहरू के संकलित कार्यों के नए संस्करण को मंगवाया था वे आ चुके थे और मेरे कार्यालय के बाहर रखे थे। उनमें स्वतंत्रता संग्राम के मूल दस्तावेजों का एक बड़ा सेट, एक बड़े किताबों के संग्रह के रूप में था। ये दस्तावेज सब्यसाची भट्टाचार्य ने संपादित किए थे। जो मेरे पसंदीदा इतिहासकारों में से एक हैं। मैंने इन सभी को इकट्ठा किया और उन्हें स्कैन कराने के लिये इंटरनेट आर्काइव ले गया।

मैं इन पुस्तकों को इकट्ठा करने में व्यस्त था। उसी समय श्री अशोक, जो राजदूत हैं, ने एक ऐसे सज्जन से मिलवाया जिनके पास भारत से संबंधित किताबों का अच्छा खासा संग्रह था। वह उन किताबों को दान करना चाहते थे। मैं किताबों को लाने का खर्चा उठाने के लिए तैयार हो गया और मेरे पास 25 बक्से आ गए जिनमें 212 बड़ी पुस्तकों थीं जिनका वजन 763 पाउंड था। इतने सारे किताबों को रखने के लिए मुझे अलमारी खरीदनी पड़ी। परंतु इसके लिये यह खर्च करना वाजिब था।

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