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कार्ल मालामुद की टिप्पणियां

होगी और कौन-सी उपलब्ध नहीं होगी। उन्होंने हमें बताया था कि वे हमें इसकी जानकारी दे देंगे कि कौन सी पुस्तक उपलब्ध होनी चाहिए।

जब वे घबरा गए तो मैं गया और सिस्टम पर नज़र डाली। मेरी आंतरिक भावना यह थी कि हम कुछ भी हटा नहीं सकते हैं। मैंने कहा कि “नहीं, हमलोग प्रति माह के एक मिलियन व्यूज और 5,00,000 पुस्तकों को नहीं हटा सकते हैं। हमलोग ऐसा नहीं करेंगे।”

उन्होंने कहा कि “ठीक है, सन् 1900 के बाद की सभी चीजें हटा दो।” और फिर उन्होंने हमारे लिए 60,000 पुस्तकें छोड़ी। मैंने कहा “सन् 1900 ही क्यों?” उन्होंने शायद ऐसे ही एक अंतिम तारीख तय कर ली थी। और इसलिए मैंने कहा, “ठीक है, मैं सन् 1923 के बाद की सभी चीजें हटा दूंगा।” और उन्होंने मेरे लिए 2,00,000 पुस्तकें छोड़ी हैं।

मैंने फिर बाकी बची 2,50,000 पुस्तकों को देखा और उस सूची को ध्यान से देखा। उनमें से बहुत सारे अधिकारिक राजपत्र थे। या फिर वे महात्मा गांधी के कार्य थे, जिनके बारे में हमें पता था कि उनका कॉपीराइट नहीं है। या फिर वे अन्य चीजें हैं।

और फिर इस सूची को ध्यान से देखने के बाद, मुझे कुल 3,14,000 पुस्तकें मिलीं। जिन्हें अब आप देख सकते हैं। वे अब भी हमसे कहना चाहते हैं कि हमें सभी चीजों को ऑफलाइन रखना चाहिए। मुझे ऐसा लगता है कि यह सरकारी काम नहीं है कि वे आपको यह बताएँ कि आपको क्या पढ़ना चाहिए और क्या नहीं पढ़ना चाहिए।

यहां पर कुछ और अधिक महत्वपूर्ण चीजे हैं: कॉपीराइट कोई बायनरी चीज नहीं है। उदाहरण के लिए, मैं उन सभी पुस्तकों को दृष्टिहीन व्यक्ति के लिए उपलब्ध करा सकता हूँ। क्योंकि ऐसा अंतरराष्ट्रीय अनबंध हैं, जो यह कहता है कि जब आप दुष्टिहीन व्यक्ति के । लिए पुस्तक का निर्माण करते हैं तो उस पर कॉपीराइट लागू नहीं होता है। यह कॉपीराइट के कानून में प्रगतिशील चीज है। उसमें कुछ बिंदु पर कोई कॉपीराइट नहीं होगा। क्योंकि उस समय तक कॉपीराइट की अवधि खत्म हो जाएगी। मुझे इस बारे में कुछ नहीं पता है कि यह सब कब होगा। इसलिए हम लोग इन्हें हटा नहीं रहे हैं क्योंकि अतंतः हमने उन्हें उपलब्ध कराया है।

आप दिल्ली विश्वविद्यालय में हुए मामले से तो परिचित ही होंगे। दिल्ली विश्वविद्यालय का मामला कॉपीराइट अधिनियम से संबंधित है जो यह कहता है कि आप पुस्तक को शिक्षण के लिए, शिक्षक और विद्यार्थी के बीच शैक्षिक व्यवस्था के लिए तैयार कर सकते हैं। इसलिए हम इन सभी पुस्तकों को विश्वविद्यालय परिसर के भीतर उपलब्ध करा सकते हैं।

पुस्तकों को हटाना सही उत्तर नहीं है। मेटाडाटा को व्यवस्थित करके इसे बेहतर बनाना है। हम अनुवाद पर काम कर रहे हैं। बेहतर ओ.सी.आर. (OCR) तैयार कर रहे हैं क्योंकि हम कुछ भाषाओं का ओ.सी.आर. कर सकते हैं लेकिन कुछ को नहीं कर सकते हैं। इसे बेहतर बनाना है। कॉपीराइट मामलों की प्रतिक्रिया देनी है।

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