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पृष्ठ:कोविद-कीर्तन.djvu/१६

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कोविद-कीर्तन

शब्दशास्त्र में आपटे की विलक्षण गति थी। पाणिनि के "शकधृषज्ञाग्लाघटरभलभक्रमसहार्हास्त्यर्थेषु तुमुन्" इस सूत्र पर, सिद्धान्त-कौमुदी में, भट्टोजी दीक्षित ने कहा है––

अर्थग्रहण मस्तिनैव संबध्यते। अनन्तरत्वात्।

दीक्षित के इस कथन का, आपटे ने, अपने "संस्कृत-गाइड" के 'तुम्' प्रत्यय ( Infinitive mood) प्रकरण में, सप्रमाण और सयौक्तिक खण्डन किया है। यह पुस्तक इतनी उपयोगी और सर्वप्रिय है कि थोड़े ही समय में इसकी कई आवृत्तियाँ निकल चुकी हैं।

दारिद्रग्रस्त होकर भी अभिरुचि होने से मनुष्य उच्च से उच्च विद्या सम्पादन कर सकता है और अपनी विद्वत्ता के बल पर वह अलौकिक प्रतिष्ठा-भाजन भी हो सकता है। आपटे के चरित्र से यही शिक्षा मिलती है।

[जनवरी १९०१