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विष्णु शास्त्री चिपलूनकर

शास्त्रीजी बड़े धैर्य्यवान् पुरुष थे। उनके स्थापित किये हुए समाचार-पत्रों मे कोलापुर के दीवान के प्रतिकूल लेख प्रकाशित होने पर उन पत्रों से सम्बन्ध रखनेवालों पर अभियोग चलाया गया। इस कारण उनके सहयोगी मित्र घबरा उठे; परन्तु शास्त्रीजी ने धैर्य नहीं छोड़ा। आये हुए सङ्कट का सामना करने के लिए उन्होंने सबको उद्यत किया और उसके लिए जो सामग्री आवश्यक थी उसका भी यथोचित प्रबन्ध कर दिया[१]

एक कवि ने कहा है कि ब्रह्मा बड़ा ही अन्यायी है, क्योंकि पहले तो वह अच्छे-अच्छे विद्वानो को उत्पन्न ही नहीं करता, और करता भी है तो वामन शिवराम आपटे के समान उन्हे बहुत दिन तक इस संसार में रहने नहीं देता। यह उक्ति बहुत सत्य जान पड़ती है। रत्नागिरी से आकर तीन-चार वर्षों मे जो उद्योग-परम्परा विष्णु शास्त्री ने उत्थापित की थी वह भली भॉति यथास्थित भी न होने पाई थी कि निष्ठुर काल ने, १८८२ ईसवी के मार्च महीने की १७ तारीख़ को, उन्हे इस लोक से उठा लिया। ऐसे उत्कृष्ट लेखक, निस्सीम देशभक्त, महारसिक और अत्यन्त सद्गुणी पुरुष का अवतार


  1. इस अभियोग का फल यह हुआ कि विष्णु शास्त्री के मित्र आगरकर और तिलक को कुछ दिनों के लिए कारागार सेवन करना पड़ा। परन्तु इस दण्ड से वे किञ्चित् भी नहीं डगमगाते। अपना कर्त्तव्य पालन करने के लिए वे सदैव सजग बने रहे।