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विद्वानों, महात्माओं और नामाङ्कित साहित्य-सेवियों के जीवन-चरित कभी पुराने नहीं होते, क्योंकि उनसे जो शिक्षा मिलती है वह सदा ही एक सी मिला करती है। राम और कृष्ण, व्यास और वाल्मीकि, कालिदास और अश्वघोष, सूरदास और तुलसीदास का चरितगान जैसे सौ-दो सौ वर्ष पहले बोधवर्द्धक था वैसे ही आज भी है और आगे भी बना रहेगा। जो बात प्राचीनों के विषय मे चरितार्थ है वही नवीनो के विषय मे भी चरितार्थ है। उनके चरितानुशीलन से मनोरञ्जन और लाभग्रहण की मात्रा मे कुछ कमी चाहे भले ही हो, पर उनका पाठ सर्वांश में व्यर्थ कभी नहीं हो सकता।

इस पुस्तक में जिन पुण्यशील पुरुषों के चरितों का संग्रह है उनके सांसारिक जीवन, उनके विद्वत्व, उनके स्वभाव-वैचित्र्य, उनके कार्य-कलाप, उनके लेखन-कौशल और उनके ग्रन्थ-निर्माण आदि से सम्बन्ध रखनेवाले ज्ञानार्जन से उत्साहवान्, महत्वाकांक्षी और अनुकरण-प्रेमी सज्जन बहुत कुछ लाभ उठा सकते हैं। शर्त यह है कि इच्छाशक्ति की कमी उनमें न हो। क्योंकि इच्छा होने और उद्योग करने ही से मनुष्य सद्गुणों की प्राप्ति में समर्थ हो सकता है।

दौलतपुर, रायबरेली, महावीरप्रसाद द्विवेदी
१३ जुलाई १९२७