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कोविद कीर्तन


आदर से रक्खे हुए हैं, क्योंकि इस पर उपहार-दाता का हस्ताक्षर है। ग्रिफिथ साहब आप पर बहुत ही प्रसन्न थे। यह परीक्षा पास करने पर पण्डितजी को गवर्नमेट की छात्रवृत्ति भी मिली और संस्कृत की छात्रवृत्ति भी। जब तक कालेज मे रहे वे अपनी संस्कृत और अँगरेज़ी की योग्यता के बल पर कालेज के बड़े से बड़े वजीफ़े प्राप्त करते गये। एक सुवर्ण-पदक भी आपको मिला। महामहोपाध्याय पण्डित कैलाशचन्द्र शिरोमणि, पण्डित बेचनराम त्रिपाठी. पण्डित प्रेमचन्द तर्कवागीश और पण्डित जयनारायण तर्कालङ्कार से आपने संस्कृत अध्ययन किया।

पण्डित आदित्यरामजी को ग्रिफ़िथ साहब से अँगरेज़ी पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। ग्रिफ़िथ साहब अनेक भाषाओं के ज्ञाता हैं, अँगरेज़ी के तो वे आचार्य ही हैं। अँगरेज़ी गद्य और पद्य लिखने में वे अपना सानी नहीं रखते। फिर,अध्यापन-विद्या मे वे ऐसे कुशल हैं कि बनारस-कालेज मे जिस समय वे कुछ कहने या सिखलाने लगते थे उस समय क्लास का क्लास तन्मय हो जाता था। ऐसा अच्छा अध्यापक पाकर पण्डित आदित्यरामजी ने भी उनके अध्यापन से लाभ उठाने में कोई कसर नही की। ग्रिफ़िथ साहब की तरह वे भी एक प्रसिद्ध अध्यापक हुए। उन पर ग्रिफ़िथ साहब का बड़ा प्रेम था। इस समय साहब यद्यपि ८० वर्ष के बूढ़े हो गये हैं और नीलगिरि पर्वत पर, एकान्तवास मे, वेदों का अंगरेज़ी-अनुवाद कर रहे हैं, तथापि वे अपने विद्यार्थियों को भूले