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कोविद-कीर्तन


विद्वानों को अल्पायु होते देख भर्तृहरि को भी खेद हुआ था। उन्होंने कहा है कि पहले तो ब्रह्मा पुरुष-रत्न निर्माण ही नहीं करता और यदि करता है तो उनके शरीर को क्षणभङ्गुर बना देता है। इस मूर्खता का कहीं ठिकाना है?

"अहह कष्टमपण्डितता विधेः"

परन्तु कोई-कोई महात्मा इतने तेजस्वी होते हैं कि अपनी अल्पकालिक स्थिति ही में वे ऐसे-ऐसे अपूर्व काम कर जाते हैं जो साधारण मनुष्यों से, सौ वर्ष पर्यन्त जीवित रहने पर भी, पूर्ण नहीं हो सकते। सायङ्काल और प्रभात की शोभा यद्यपि क्षणमात्र ही दृग्गोचर होकर लोप हो जाती है, तथापि वह उतने ही समय में लोगों को अलौकिक आनन्द दे जाती है। अँगरेज़ी कवि व्यन जानसन् ने कहा है––

In small proportions we just beauties see;
And in short measures life may perfect be.

सतारा ज़िले में सावन्तवाड़ी नामक एक स्थान है। उसके अन्तर्गत आसोलीपाल नामक ग्राम में, सन् १८५८ ईसवी में, वामनराव का जन्म हुआ। वामनराव जब तीन ही वर्ष के थे तभी उनके पिता शिवरामरावजी आपटे ने अपनी जीवन-लीला संवरण की। वामनराव के पिता के मरने पर उनकी विधवा माता अपने लड़कों को लेकर जीवन-निर्वाह के निमित्त कोल्हापुर आईं। वहाँ भी उस साध्वी का पीछा दुर्दैव ने न छोड़ा। कोल्हापुर मे उसके एक १५ वर्ष के पुत्र को