पृष्ठ:क्वासि.pdf/११७

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वासि सयोग हस, तुम मेरे विरह त्रास, तम मेरे चिर प्रवास, तम मेरी साध अमर ओ, मेरी तोल तहर। 3 तम हो मानो अनग, पर, तुम मम अग अंग, यद्यपि तुम नित असग, पर, तुम मम सग सग, तुम मम कल्पना चग, तुम मेर राग रंग, तुम मेरी हिय उमग, गन तरग तुम, तुम मेरी लोल तहर! प्रियवर, ६ गुथे हुए हो तुम मम पच तत्व कण कण में, पसे हुए हो तुम इस मेरे आकृत मा में, तुम हृदय स्प दन में, तुम मेरे लोचन में, जीया क क्षण क्षण में तुम फेले निखर निरार, श्रो गम कल्लोल लहर ! तर पट से बद्ध हुई मेरी यह माग डोर, ता मुख शशि पर अटके मेरे लोचन चकोर, तव धन वेणी लख लरा, नाच रहा चित्त मोर, अगीकृत करने का आया है अब छावसर, श्रो, मेरी लोल लहर के द्रीय कारागार, बरेली, दिनाक ६ फरवरी १९५४ पानवे