पृष्ठ:क्वासि.pdf/६३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

दूभर-सा कटता है तुम बिन जीवन, प्रियतम दुभर सा कटता है तुम बिन जीवन, प्रियतम, चलता ही जाता है कात चक्र अति निर्मम । ? कटते है निपट विवश ये सूने जीवन क्षण, करते ही रहते हैं हम सदा त्वदीय स्मरण, कि तु न निषेद मिला, भानुल है यह जीवन, एक टीस हिय में उठ आती ही है यम यम, दूभर सा कटता हे तुम बिन जीव 7, प्रियतम । २ प्रवण काल याली में, जोवन क्षरा, मुक्ता सम- लुढके जाते है नित । देख रहे हम अक्षम, पर उन मुक्ताओं में प्रथित स्मरण सूत्र परम, जिसके बल भावी का होता गत से सगम, यो, स्मर अवलम्बन से काट रहे जीवन हम । १ ढालू छत्तीस