पृष्ठ:क्वासि.pdf/६४

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बासि प्राणाधिक, कन तक हट पायेगा अतर पट ? फिर कर तुम आयोगे सम्मुरा, ओ जीवन नट ? मेटो, हे, मेटो, यह विकट यवनिका सकट । तुम दिन जीवन लीला आज हुई पूर्ण विपम, दूभर सा कटता है तुम जिन जीवन, प्रियतम | इतने दिन नीत गाए, फिर भी स्मृति प्यारी सी, आ जाती है सम्मुख, सिधु स्नात कॉरी सी, टपकाती केसों से जल बूद खारी सी । नहीं जान पाए हैं हम यह सब भद भरम, दूभर सा मटता है तुम बिन जीवन, प्रियतम । ५ यह मजुल मुख, वे अति क्रुण डहडहे लोचन, वह तन मुस्कान मधुर, वह तब सभिल चितवन, परम सुसस्स्त, मनाज्ञ, वे सयत स्नह वचन, इन सत्र की मधु स्मृतियों मथती है अतरतम, दूभर सा कटता है तुम बिन जीवन, प्रियतम । ६ अतस्तल शू य आज, आज जगत सूना है, ओ प्राणों के पाहुन, तुम बिन सब उना है, जीवन में गर्थ भाव उमडा दिन दूना है, होती ही रहती है हिय में खुट खुट हरदम, दूभर सा कटता है तुम बिन जीवन, प्रियतम । सैतीस