ने दो-तीन बार चन्द्रमा को राकेट भेजने के प्रयास किए। रूस ने राकेट मे दो कुत्ते भेजे जो २८१ मील तक जाकर पृथ्वी पर लौट आए। अमरीका ने मानव पर अन्तरिक्ष का प्रभाव देखने को एक बन्दर भेजा। अमरीका ने अपना एक उपग्रह एटलस प्रक्षेपणास्त्र मे भेजा था जो समूचा साढे चार टन वजन के प्रक्षेपणास्त्र के सहित कक्ष मे स्थापित होकर पृथ्वी की प्रदक्षिणा करने लगा। इस परीक्षण से पृथ्वी से अन्तरिक्ष को और अन्तरिक्ष से पृथ्वी को सवाद सवहन के प्रयोग सफल हुए। सवहन क्षेत्र मे यह क्रान्ति हो गई कि पृथ्वी के एक छोर से दूसरे छोर तक सदेश कुछ मिनिटो ही की बात रह गई।
अन्तरिक्ष के बाद पृथ्वी की भी खोज हुई जो अन्तरिक्ष की भांति ही विस्तृत थी। पृथ्वी की खोज का सम्बन्ध भी और गतिविधि से था। पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र में भारत ने बहुत महत्त्वपूर्ण योग दिया। भू चुम्बकीय परिवर्तनो, सौर-क्रियाओ और चुम्बकीय तूफानो के सम्बन्ध मे निरन्तर पर्यवेक्षण हुए। भारत के अन्तरिक्ष विज्ञान विभाग की ओर से बम्बई और कोडाहकनाल की वेधशालाओ मे आधुनिक यन्त्र लगाए गए। कोडाहकनाल मे सूर्य ग्रहण, सूर्य के धब्बो तथा सूर्य की लहरो के चित्र भी लिए गए। अमरीकी वैज्ञानिको ने पृथ्वी पर की गई खोज के अनेक रहस्योद्घाटन किए, प्रशात सागर तल की कीच मे उन्होने अनेक बहुमूल्य खनिजो की विद्यमानता का पता लगाया। यह बात भी जान ली गई कि ६० लाख वर्ग मील का दक्षिणी ध्रुव प्रदेश ठोस भूमि नही अपितु द्वीपो और पहाडो की शृखला का देश है। यह भी ज्ञात हुआ कि दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में इतनी बर्फ है कि सारी पृथ्वी पर उपलब्ध बर्फ से चालीस गुनी है। उत्तरी ध्रुव देश में दक्षिणी ध्रुव देश की अपेक्षा ५० प्र॰ श॰ हिमवर्षा अधिक है, तथा ध्रुव प्रदेशो मे निम्नतम तापमान शून्य से १२४ अश फौर्नहाइट नीचे है।
अमरीका और ब्रिटेन के बीच जेट विमानो द्वारा सार्वजनिक यात्रा आरम्भ हुई, जिससे यात्रा के समय मे कई घन्टे की कटौती हो गई।
सितम्बर मे जेनेवा मे विश्व परमाणु सम्मेलन हुआ जिसमे ८०