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खग्रास

विरुद्ध तथा विश्वशान्ति के मार्ग के रोड़े है, तो शोषक वर्ग का सफेद लहू जहाँ का तहाँ ठिठक गया।

इस ऐतिहासिक सम्मेलन में अफ्रीका से मिश्र, लाइवीरिया, लिबिया, सीरिया, सूडान, इथियोपिया और गोल्ड कोस्ट ने भाग लिया था। इसके तीन साल बाद मिश्र की राजधानी काहिरा में एशियाई-अफ्रीकी-जन सम्मेलन हुआ, जिसमें आजाद देशो के प्रतिनिधियो के अलावा उन तमाम राष्ट्रीय आन्दोलनो के प्रतिनिधि भी आये थे जहा आजादी का संघर्ष चल रहा था। कुल मिला कर ४५ देशो ने इस सम्मेलन में भाग लिया था। जहाँ से एक संयुक्त गर्जन दुनियाँ ने सुनी कि सभी प्रकार और सभी रूपो का साम्राज्यवाद अन्य देशो के राजनैतिक गठबन्धन तथा ऐसी गुटबन्दियाँ जो अपने प्रभाव क्षेत्रो को बढ़ाकर विश्व-शान्ति को खतरे में डालती है और राष्ट्रीय चेतना का दमन करती है, किसी एक देश या कुछ देशो के समूह को फौजी मदद देती है जो पड़ौसी देशो के लिये खतरे का कारण बन जाती है, और उन्हें अपना सैन्य बजट बढाना पड़ जाता है। जिसका फल यह होता है कि जन-कल्याणकारी काम रुक जाते है। साम्राज्यवादी ताकतो के हित में दूसरे देशो की राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था का शोषण, साम्राज्यवादियो के हित में राष्ट्रीय सरकारो को उलटने के षड्यन्त्र, तथा आर्थिक सहायता के साथ ऐसी शर्ते लगाना जो छोटे देशो के प्रतिकूल होती है और अन्त में उनकी आजादी की प्रभुसत्ता पर हमलावार होती है, तथा दूसरे देशो की सीमा में फौजी अड्डे बनाना या सेनाये ठहराना भी दोष ही है।

इसके बाद वाडुग की तीसरी सालगिरह के अवसर पर अप्रैल सन्

१९५८ में घाना की राजधानी अकारा में अफ्रीकी आजाद देशो का एक सरकारी सम्मेलन बुलाया गया, जिसमे संयुक्त अरब गणराज्य घाना-लिब्बिया, लाइवीरिया, ट्यूनिशिया, मोरक्को, इथिऔपिया, और सूडान सम्मिलित हुए। ट्यूनीशिया और मोरक्को एक वर्ष पूर्व ही घाना में पूर्ण स्वतन्त्र घोषित किये जा चुके थे। अल्जीरिया, कैमस, टोगोलैण्ड, और नाइजीरिया के निरी-