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खग्रास

का बाजार जब बन्द हो गया तो अंग्रेजो के सिवा अन्य योरोपियो ने गोल्ड कोस्ट छोड़ दिया। परन्तु तभी से यहाँ की अशान्ति जाति से अंग्रेजों का सङ्घर्ष भी आरम्भ हो गया। इस अशान्ति संघ की स्थापना अशान्ति राजा ओसेह तू तू ने की थी। १९ वी शताब्दी के द्वितीय चरण में तटवर्ती शासको ने अशान्ति सम्राट से विद्रोह करके अँग्रेजो से सन्धि कर ली। और उस सन्धि के बल पर अँग्रेजो ने गोल्ड कोस्ट पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया। परन्तु अशान्ति संघ से संघर्ष चलता ही रहा। बीसवीं शताब्दी के आरम्भ में अशान्ति सम्राट् प्रेम पेह से फिर सन्धि हुई। इसके बाद लगभग आधी शताब्दी तक अनेज इस प्रदेश पर छाये रहे। अन्तत द्वितीय महायुद्ध के बाद जब सभी देशो की पुरानी परिपाटी भङ्ग हुई तो गोल्ड कोस्ट में भी आजादी की हवा चलने लगी। घाना की जनता ने डाक्टर डका के नेतृत्व में युनाइटेड गोल्ड कोस्ट कन्वेशन का दल सङ्गठित किया। उस समय डा० एन्कूमा अमेरिका में शिक्षा पा रहे थे। पीछे उन्होने स्वदेश आकर कन्वेशन पीपुल्स पार्टी की स्थापना की। पार्टी का विरोध काफी हुआ। परन्तु अन्त में सतत संघर्ष के बाद ६ मार्च सन् १९५७ में घाना को ब्रिटेन की रानी ने स्वतन्त्र कर दिया।

वे भी दिन थे जब अफ्रीका के बाजारो में भेड़-बकरियों की भाँति आदमियो की बिक्री होती थी। बड़े-बड़े विदेशी गोरे जमींदारों के लिए गुलामो के व्यापारी वहाँ पहुचते थे। वे दिन भी अब लद गये जब योरोपीय औपनिवेशिक शक्तियाँ ब्रिटेन और फ्रांस, जर्मनी, इटली, स्पेन, और पुर्तगाल, इङ्गलैंड और बेलजियम अफ्रीकी दौलत का बन्दर-बाँट करके बगले बजाया करते थे।

अप्रैल १९५५ में जब एशिया और अफ्रीका के २९ आजाद राष्ट्रो ने वाडुँग से पराधीन लोगो की संयुक्त आवाज बुलन्द की और दुनिया ने कान खोल कर सुना कि उपनिवेशवाद चाहे वह किसी भी रूप में हो, उसका अन्त कर दिया जायेगा। और जो विदेशी शासन के शोषण मनुष्य को मूल मानवीय अधिकारो से वंचित करते है, संयुक्त राष्ट्र सङ्घ की घोषणा-पत्र के