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खग्रास

कर रहे थे। अभी घाना और गिनी मिल कर एक हुए थे, सन्भव था लाइवेरिया भी शीघ्र ही इसमें आ मिले। घाना के उद्ग्रीव राष्ट्रपति डा० एन्कूमा तो यह आशा करते थे कि इस संघ में सभी अफ्रीकी देश सम्मिलित हो जाये।

अफ्रीकी प्रदेशो में अफ्रीकी, अरबी तथा कुछ एशियाई लोग बसते थे। यह अफ्रीकी एकता में बाधक तो थे। परन्तु पश्चिमी-पूर्वी और केन्द्रीय अफ्रीका के संघ तो आसानी से बन सकते थे। दक्षिणी अफ्रीका में गोरो का बोलबाला है जो केवल पाँच फीसदी थे। अब इस प्रान्त के लोगो ने नारा बुलन्द किया था---"मकान के मालिक कब तक मकान से बाहर खड़े रहे।" इस समय अफ्रीका के सम्मुख तीन प्रश्न थे---सम्पूर्ण महाद्वीप की स्वतन्त्रता, छोटी इकाइयो का विलय और जातिवाद की समस्या।

उपग्रह का राजनीतिक महत्व

सोवियत रूस ने जब पहिला उपग्रह छोड़ा था तभी अमेरिका में खलबली मच गई थी। पर जब रूस का दूसरा उपग्रह भी सफलतापूर्वक कक्ष में स्थापित हो गया तो अमरीका ही में नही---अमरीकी फौजी योजनाओ में सम्मिलित देशो में--विशेष कर योरोपीय देशो में खलबली मच गई। उत्तरी अतलान्तिक सुरक्षा संगठन (नाटो) के राजनीतिक सलाहकार गुट ने नाटो असेम्बली में एक रिपोर्ट पेश की जिसमें लिखा था कि नाटो के यूरोपीय देशो की राय में रूसी हमले का ख्याल एक दम झूठा है, और अमरीका इसे ठीक तरह से नहीं समझता।

इस रिपोर्ट से अमरीकी फौजी क्षेत्रो में बेचैनी फैल गई। क्योंकि तथाकथित रूसी हमले का मुक़ाबिला करने ही के लिए नाटो संगठन किया गया था। अब यूरोपीय देशो की नयी नीति से नाटो के फौजी संगठन की नींव ही ढह गई थी। और पश्चिमी योरोप के देश अमरीकी फौजी गुट से निकल भागने की बात सोचने लगे थे।