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खग्रास

पर आक्रमण कर दिया। वास्तविक बात यह थी कि रूस कोरिया के मामले में योरोपीय राष्ट्रों के किसी हस्तक्षेप को पसन्द नहीं करता था। इसीसे उसने यह हठ ठानी कि कोरिया की राष्ट्रीय स्वतन्त्रता के लिए जो कमीशन स्थापित हो, उसमे किसी ऐसे दल का समावेश न हो जो साम्यवाद विरोधी तत्व रखता हो।

१९४७ में, मास्को में विदेश मन्त्रियों का जो सम्मेलन हुआ था उसमें यह निर्णय हुआ था कि समस्त युद्धकालीन बन्दियों को १९४९ तक छोड़ दिया जायगा। परन्तु सन् १९५७ तक भी यह काम पूरा नहीं किया गया। और सन् १९५८ की समाप्ति तक भी कोई ८७ हजार जर्मन युद्धबन्दी तथा २६ हजार अन्य नागरिक, जिन्हें रूस ने पकडा था, लापता थें।

हगेरी की घटनाओं के फलस्वरूप जो तनातनी और अशान्ति साम्यवादी चीन में आरम्भ हुई, उसमें अनेक प्रति-क्रान्तिवादियों ने तोड़-फोड़ और दूसरे उपद्रव आरम्भ किए। आरम्भ में इन प्रति-क्रान्तिवादी जनों को पीकिंग रेडियो ने सन्तुष्ट करने की चेष्टा की। तत्कालीन सुरक्षा मन्त्री लो-जुहर्न-चिग के कथनानुसार ये प्रति-क्रान्तिवादी अधिकाँश में औद्योगिक श्रमिक ही थें। इन तोड़-फोड़ और उपद्रवों के कारण कोयले की खानों तथा दूसरे भू-गर्भस्थ सम्बन्धी सर्वेक्षण के कार्यो में बहुत बाधा आ उपस्थित हुई। अन्त में लो को इनके विरुद्ध सख्त कदम उठाना पड़ा। और कई हजार प्रति-क्रान्तिवादी श्रमिक शिविर में भेज दिए गए। ऐसे प्रति-क्रान्तिवादी जन राष्ट्रीय संस्थाओं, सेनाओं, और अध्यवसायों में सर्वत्र मौजूद थें। और उनके कारण साम्यवादी निर्माण और परिवर्तन का कार्य सुचारू रूप से चलने में बाधा उपस्थित हो रही थी। तोड़फोड़ के प्रयत्नों के अतिरिक्त श्रमिकों में जो अशान्ति व्याप्त हो गई थी, उसने एक रूप शासन के उत्पादन स्तरो के प्रति घृणा को जन्म दिया था। ये प्रति-कान्तिवादी जन पूँजीवादी भावना रखते तथा लोकतन्त्री विधियों में रुचि रखते थें। वे साम्यवादी दल की भी आलोचना करते थें। इन श्रमिकों के असन्तोष के मुख्य कारण ये थें कि उन्हें वेतन कम मिलता था और काम के घण्टे अधिक थें, फिर तनिक सा भी