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है कि पृथ्वी का अपना चुम्बकीय क्षेत्र क्या है? वे यह भी नही जानते कि चन्द्रलोक मे चुम्बकीय क्षेत्र है या नही। मानव शीघ्र ही भौतिक, भू-भौतिक, उल्का, चन्द्र-सम्पर्क, व्योम से सचार व्यवस्था, तथा व्योम रचना सम्बन्धी बहत सी बातो को जान लेगा। इसके बाद उसे नक्षत्रीय व्यापक सचार व्यवस्था, तथा जीव विज्ञान सम्बन्धी जानकारी प्राप्त करने मे कुछ समय लगेगा। चन्द्रमा और अन्य ग्रहो की वैज्ञानिक जाँच भी वह दूसरे दौरान मे करेगा। इसके बाद वह व्योम यात्रा के योग्य होगा, तथा चन्द्रलोक और वहाँ से अन्य नक्षत्र लोको मे चालक विहीन यानो मे यात्रा कर पायेगा।

परन्तु व्योम-यात्रा का उद्देश्य केवल इतना ही नही है। इसके फल स्वरूप मानव जीवन पर भी बडे बडे परिणाम होगे। सम्भवत मानव के सम्पूर्ण विकट रोगो का अन्त हो जायगा। वह सुख से रह सकेगा। नासूर, थोडी उम्र मे बुढापा, नपुसकता, बाल सफेद होना, गजापन आदि बीमारियो का भी अन्त हो जायगा। अब यह पता लग गया है कि भूलोक के मनुष्यो को ये बीमारियाँ वाह्य अन्तरिक्ष से विकिरण के कारण उत्पन्न होती है। यह विकिरण ब्रह्माण्ड किरणो के रूप में पृथ्वी तक पहुँचता है और यहाँ पहुँचते पहुँचते इसका तेज कम हो जाता है। अमरीकी वायुसेना ने अन्तरिक्ष मे चूहे, बिल्ली, तथा इसी प्रकार के छोटे-बड़े जानवरो को बडे-बडे गुब्बारो मे भेजा, जो तीन दिन अन्तरिक्ष मे रह कर लौट कर पृथ्वी पर आ गए। इनके आश्चर्यजनक परिणाम हुए। चूहो के काले बाल कुछ दिन बाद सफेद हो गए। सम्भवतया कि ब्रह्माण्ड किरणो ने चूहो के शरीर मे प्रविष्ट होकर उनके बालो की जडे खोखली कर दी थी। कुछ जानवरो का शरीर बुरी तरह झुलस गया था, कुछ पागल हो गए। कुछ पर कुछ भी असर नहीं पड़ा।

यह ज्ञात हुआ कि ब्रह्माण्ड किरणो से शरीर के जीव-कोष नष्ट हो जाते है। जीव-कोष नष्ट होने से ही कैसर की बीमारी होती है तथा ब्रह्माण्ड विकिरण से कैन्सर का रोग असाध्य रूप धारण कर लेता है। कटिबन्ध के देशो मे कैन्सर की बीमारी नहीं होती। इस रोग के रोगी बहुधा समशीतोष्ण कटिबन्ध तथा उत्तरी प्रदेशो में पाए जाते है। विषुवत रेखा के