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असाधारण घटना हे। इनके माध्यम से मनुष्य को इतने शक्तिशाली साधन प्राप्त हुए है कि वह व्योम मे उपग्रहो की स्थापना कर पाया। व्योम मे उपग्रह रूस और अमेरिका ने जिस प्रक्षेपणास्त्र की सहायता से भेजे है-उन अन्तर्वीपीय प्रक्षेपणास्त्रो से पृथ्वी के किसी भी भाग पर बैठे-बैठे ही महाविध्वसक वार किये जा सकते है। अत यह बात अभी भविष्य के गर्भ मे है कि इन यन्त्रो का रचनात्मक प्रयोग किया जाय या सैनिक प्रयोग।

एक महत्त्वपूर्ण बात इस सम्बन्ध मे यह है कि जब से मानव ने व्योम मे प्रवेश किया है तब से अब राकेट की शक्ति को अश्वशक्ति के आधार पर नही बल्कि उसके वेग के आधार पर प्राका गया है। यह वेग पौण्ड शक्ति या टन शक्ति की सीमा तक चला गया है। यह वेग पृष्ट भाग से गैस को बाहर निकालने वाले उपकरण से प्राप्त होता है। एक हजार या दो हजार पौड वजन के कृत्रिम उपग्रह को कक्ष मे स्थापित करने के लिए दो से लेकर चार लाख पौण्ड शक्ति वाले राकेट-इन्जनो की आवश्यकता होती है। राकेट को अत्यधिक ऊँचाई तक पहुचाने के लिए राकेटो को कई खण्डो मे विभक्त किया गया है। एक खण्ड का ईंधन समाप्त होने पर वह खण्ड जल कर नीचे गिर जाता है और दूसरा आगे गतिशील होता है।

चन्द्रलोक तक पहुँचने के लिए ऐसे शक्तिशाली राकेट की आवश्यकता है जो पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति से छुटकारा पाने के लिए २५ हजार मील प्रति घण्टे के वेग से चल सके। तभी वह चन्द्र लोक तक पहुच सकता है। वैज्ञानिक अब यत्न से गुरुत्वाकर्षण की गहरी छानबीन कर रहे हैं। आइन्स्टीन ने भविष्य वाणी की थी कि घडी को यदि गुरुत्वाकर्षण शक्ति के क्षेत्र से बाहर ले जाया जाय तो उसकी गति तेज हो जायगी। वैज्ञानिक परमाणु-घडी को वाह्य अन्तरिक्ष मे भेजकर इस सत्य की परीक्षा करना चाह रहे है।

अब तक जो तथ्य जान लिए गए हैं उनसे बडे बडे तूफानो और आँधियो का पहिले से ही पता लग जाया करेगा। चन्द्रमा के स्वरूप मे भी अभी वैज्ञानिक अनेक जिज्ञासा रख रहे है। वे चन्द्रमा का निकटतम दूरी से चित्र लेना चाहते है। अभी तक किसी वैज्ञानिक को यह पता नही