इस समय अपना बिजली की बैटरी वाला सूट पहिना था जो बिजली से गर्म हो रहा था और वहाँ के असह्य शीत से उन्हें बचा रहा था। सुबह होते ही उन्होंने शिविर छोड़ दिया था, और यन्त्रों का झोला कन्धे पर डाल कर वे अकेले ही निकल पड़े थें। चारों ओर के अद्भुत दृश्यों को देखते हुए वह शिविर से कोई दो मील निकल गए। सामने सख्त बर्फ की एक चट्टान थी। वे ध्यान से उसका निरीक्षण करने लगें। वह जानना चाह रहे थें कि चट्टान की भीतरी परतों की हालत कैसी है। अभी वे झोले से एक यन्त्र निकाल कर उसे चट्टान की सतह पर जमा ही रहे थें कि एकाएक उन्हें दीख पड़ा कि उनका शिविर अत्यन्त वृहदाकार हो कर निकट, बिलकुल उनकी आँखो के आगे, आ गया। जोरोवस्की के हाथ से यन्त्र छूट गया, और वह आँखे फाड़-फाड़ कर शिविर को देखने लगे। वे तो अभी-अभी शिविर से दो मील चल कर आए हैं, मार्ग और दिशा को सावधानी से नोट करते हुए, फिर शिविर यहाँ कैसे आ गया। और उसका यह वृहदाकार कैसे बन गया? अभी वह आँखे फाड़-फाड़ कर शिविर की ओर देख ही रहे थें कि एक बदली के टुकड़े ने सूर्य को ढाप लिया और वातावरण में भी कुछ हेर-फेर हुआ। बस पलक झपाते—माया नगरी की भॉति वह अति वृहद् शिविर उनकी आँखो से ओझल हो गया। उन्होंने अकचका कर अपने चारों ओर देखा—दूर तक बर्फ का विशाल मैदान फैला हुआ था। आतंक से जोरोवस्की का कलेजा कांप गया, यह क्या पैशाची माया है? वह जोर-जोर से लिजा को पुकारने लगे। पर उन्हीं की आवाज लौट कर उन तक आ गई। उनका सिर चकराने लगा और वह भूमि पर गिर गए। लेकिन यह क्या? उनका गिरना था कि फिर उनका तम्बू उनकी आँखों के सामने फैला नजर आने लगा। हिम्मत बाँध कर वह उठ खडे हुए तो शिविर फिर आँखों से गायब?
जोरोवस्की जोर-जोर से लिजा को पुकारते हुए जिधर से आए थें, उधर ही की ओर लड़खड़ाते-गिरते-पड़ते भागे। एकाएक उन्हें प्रतीत हुआ, सामने समुद्र लहरा रहा है। और उसकी प्रचण्ड लहरे जैसे उनके चरणों से टकराना ही चाहती है। सामने ही एक विशाल पानी का जहाज कुछ दूरी पर मन्थर गति से उन्हीं की ओर चला आ रहा है। उनके पैर ठिठक गए । क्षण भर में