उन्होंने देखा कि जहाज उनके बिलकुल निकट आ गया है। उनके मुँह से चीख निकल गई, उन्हें ऐसा प्रतीत हुआ कि वह समुद्र में डूब रहे हैं। बदहवास होकर वह गिर गये और वह दृश्य उनकी आँखों से ओझल हो गया। वह बौखला कर आगे की ओर भागे तो देखते क्या है तीन-तीन सूर्य उदय हो रहे हैं। एक उनके सामने, दूसरा बाई ओर, तीसरा दाहिनी ओर। वह अकचका कर तीन-तीन सूर्यों को अभी देख ही रहे थें कि अकस्मात उन्हें दीख पड़ा कि वही विशाल जहाज सामने औंधा पड़ा है और उसकी नीचे लटकती हुई चिमनियों से धुआँ निकल रहा है। अचरज की बात यह कि वह औंधा ही पानी पर तैर रहा था। यह क्या चमत्कार था, उनकी बुद्धि काम नहीं दे रही थी। वहाँ तो आसपास सैकड़ों मील तक न समुद्र था न जहाज। जहाँ तक उनकी स्मृति काम दे रही थी, वह यही सोच रहे थें। अब जो उन्होंने नजर उठा कर देखा तो समुद्र और जहाज गायब, और सामने एक ऊँचा पहाड़ और मीलो तक फैली हुई सुहावनी घाटी जिसमें हरे-भरे पेड़ खुशनुमा लग रहे थें। ऐसा प्रतीत होता था कि एकाध ही घण्टे मे वहाँ पहुँचा जा सकता है। उन्हें याद आया कि यहाँ से सैकड़ों मील दूर वह घाटी थी। जहाँ हफ्तों में पहुँचा जा सकता था—वह यहाँ कैसे आ गई? या वे ही वहाँ कैसे जा पहुँचे?
वह कुछ भी निर्णय न कर सके और उनका सिर घूमने लगा। उन्हें ऐसा प्रतीत हुआ कि तीनों सूर्य उनके चारों ओर चक्कर काट रहे हैं और सारा ब्रह्माण्ड घूम रहा है। कभी लहलहाता समुद्र, कभी औंधा लटकता जहाज और कभी हरी-भरी घाटी, और कभी उनका वृहदाकार शिविर उनकी आँखो में घूमने लगे। वह वही गिर कर बेहोश हो गए।
होश में आने पर उन्होंने देखा—वह अपने शिविर में चमड़े के तम्बू में लेटे है। लिज़ा और प्रोफेसर उनके पास है। उन्हें होश में आया देख लिज़ा ने ब्राण्डी डाल कर काफी का एक गर्मागर्म प्याला उनकी ओर बढ़ाया। परन्तु अभी तक जोरोवस्की के मस्तिष्क में वही सब बाते घूम रही