पृष्ठ:खग्रास.djvu/१७४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१७४
खग्रास

चल रही थी, हवा में घुल कर गायब हो गई है। उन्होंने घबरा कर जोर-जोर से पुकारा—"लिजा तुम कहाँ हो?" परन्तु जबाव में लिजा खिलखिला कर हँस पडी। उसने कहा—"जोरोवस्की, तुम फिर पागल हो गए हो, मैं तो तुम्हारे साथ ही चल रही हूँ।" जोरोवस्की ने अपने चारों ओर, अगल-बगल, आगे-पीछे देखा, पर अब भी लिजा उसे न दिखाई दी। वह उसकी आवाज सुन रहे थें, पर देख नहीं पा रहे थें। वह कुछ कहने ही जा रहे थें कि उन्होंने देखा—लिजा उनसे कुछ फुट के अंतर पर हवा में तैर रही है।

जोरोवस्की फिर चिल्लाया—"लिज़ा, लिज़ा, तुम किस हालत में हो, सावधान रहो, तुम उड़ी जा रही हो।"

इस पर लिज़ा ने उसका हाथ पकड़ लिया, कहा—"मैं तुम्हारे साथ ही चल रही हूँ जोरोवस्की। तुम इस कदर परेशान क्यों हो?" परन्तु जोरोवस्की इस समय भी लिज़ा को नहीं देख रहे थें। इसी समय प्रोफेसर ने लपकते हुए उसके पास आकर कहा—"हम श्वेत अन्धकार में फँस गए है, जोरोवस्की। चिन्ता न करो। तुम जो कुछ देख रहे हो यह आँखो का भ्रम है। आज 'श्वेत दिवस' है। जब आकाश मेघाच्छन्न होता है, तब श्वेत दिवस होता है। और वातावरण में श्वेत अन्धकार छा जाता है। मेघाच्छादित आकाश और बर्फ से ढकी बिलकुल सफेद भूमि के बीच बन्दी हो जाने वाली प्रकाश की किरणें इतनी घनीभूत हो जाती है कि मनुष्य की दृष्टि उसमें डूब जाती है। जो परिणाम होता है, वह अन्धकार का बिलकुल ठीक विपरीत होता है। देख रहे हो—इस समय चारों ओर सफेदी के अतिरिक्त दूसरा कोई रंग दीखता ही नहीं है।"

"ओहो, अब मैं समझा। इस शुद्ध सफेद वातावरण में देखने का अभ्यास आदमी की आँखो को उतना ही होता है जितना सघन अन्धकार में देखने का। यही है 'श्वेत अन्धकार'। इसके सम्बन्ध में मैंने बहुत साहित्य पढ़ा था। पर देखा है आज।"

वे लड़खड़ाते शराबी की भाँति चल रहे थें। वास्तव में उन्हें पैरों