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खग्रास

के नीचे की भूमि का भी पता न था कि ऊबड़-खाबड है या समतल। अब वे यह भी ठीक-ठीक अनुमान नहीं कर पा रहे थें कि वे किस ओर जा रहे हैं। प्रोफेसर ने कहा—"हमें अपनी दाहिनी दिशा में चलना चाहिए।"

परन्तु कोई एक शक्ति उन्हें बराबर बाँई और घूमने को विवश कर रही थी। अपनी समझ में वे बराबर दाहिनी ओर सीधे चले जा रहे थें। वे बड़ी देर तक चलते रहें। परन्तु वह चट्टान उन्हें मिल नहीं रही थी। वे आगे बढ़ते जा रहे थें, बढ़ते चले गए, और अचानक उन्होंने देखा कि वे अपने शिविर में लौट आए हैं। लगभग आधा दिन तक वे चलते रहे थें। लिज़ा ने हँस कर कहा—'यह भी खूब रही। कोल्हू के बैल की तरह घूम फिर कर हम वापस अपने शिविर में आ गए।"

प्रोफेसर ने कहा—"दक्षिणी ध्रुव में चलने वाली हरेक वस्तु अपने बाँयी ओर घूमती है। बर्फ की आँधी उठेगी तो बवण्डर बाँई ओर चक्कर लगाएगा। पेइगन पक्षी के पद-चिह्न सदा बाँई ओर घूमते हैं। पानी में तैरती सील मछली भी बाँई ओर घूमती है।"

"बहुत खूब, अब हम विदेशी सैलानी भी बाँई ओर घूम रहे हैं। जैसे बड़े-बड़े नगरों में सड़कों पर तख्ती लगी रहती है—बाँये चलो। यहाँ प्रकृति कान पकड़ कर सब को बाँये घुमाती है।" लिज़ा जोर से हँस पड़ी।

जोरोवस्की ने कहा—"तब तो उत्तरी ध्रुव में हर वस्तु दाहिनी ओर घूमती होगी?"

"बेशक, उत्तरी ध्रुव में हरेक चीज बाँए से दाहिने घूमती चली जाती है।"

"खैर, तो आज तो अब और कोई काम नहीं हो सकता। जब तक मौसम साफ नहीं हो जाता। अब चल कर पेट पूजा ही की जाय।"

लिज़ा के इस प्रस्ताव पर सहमत होकर सब शिविर में लौट आये और लिज़ा ने बिजली के स्टोव पर चाय का पानी चढ़ा दिया।