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खग्रास

संचालन में व्यस्त थें दूसरी ओर वे अपने मित्रों को सन्देश भेज रहे थें। वे दूरी-वातावरण-वायु के दबाव और यान के पंखों पर प्रकम्पनो के शब्दों को नापते-गिनते और प्रसारित करते जाते थें। शीघ्र ही यान ध्वनि सीमा पर पहुँच गया। और सकुशल सीमा उल्लंघन भी कर गया। डाक्टर स्काट ने पूरे सन्देश भेजें। अब तक यान के पथ में कोई परिवर्तन नहीं हुआ था। परन्तु अब जैसे उन्हें प्रतीत हुआ कि कठिनाई बढ़ती जा रही है। और यान पर नियन्त्रण दूभर हो रहा है। उन्होंने नीचे इस परिस्थिति का प्रसार कर दिया। अब शून्याकाश की प्रकम्पन तरंगें बुरी तरह यान से टकरा रही थी। और डाक्टर अत्यन्त सतर्क होकर उनके प्रभावों का निराकरण कर रहे थें। साथ ही ऊर्ध्वाकाश में प्रकृति में क्रिया और प्रतिक्रिया की भी छानबीन करते और प्रसारित करते जाते थें। और ज्योही यान वायु-मण्डल को छेदता गया, प्रतिक्रिया की व्याप्ति अधिक से अधिक होती गई। बड़े यन्त्र और सावधानी से जो असंख्या यन्त्र-पुञ्ज यान में लगाए गए थें, वे सब भिन्न-भिन्न कक्षा में अपना कार्य कर रहे थें, उनमें से बहुतों के संकेत स्वयं ही पृथ्वी पर जा रहे थें। परन्तु अब डाक्टर स्काट को ऐसा अनुभव हो रहा था कि भीषण प्रकम्पन तरंगों ने यान को झकझोर डाला है। वह कुछ-कुछ मूर्छा का भी अनुभव कर रहे थें। उन्हें ऐसा प्रतीत होता था जैसे अब उनकी हृदयगति ही बन्द हो जायगी। उन्होंने सब परिस्थितियों से अपने हैडक्वार्टर को सूचित कर दिया और यान को यथा सम्भव धीमी गति से फिर पृथ्वी के वातावरण में प्रविष्ट कर दिया।

यह सूचना पाते ही हैडक्वार्टर के वैज्ञानिक और कर्मचारी सावधान हो गए। और यान तथा डाक्टर स्काट सही सलामत पृथ्वी पर उतर आएँ, इसकी सब सम्भव व्यवस्था करने लगे। पृथ्वी के सात हजार वर्ग मील में प्रथम ही से फैले हुए प्रेक्षक यान के वापस पृथ्वी पर लौटने की बड़ी उत्कण्ठा से प्रतीक्षा करने लगे।

अब डाक्टर स्काट स्पष्ट ही विपरीत अवस्थाओं का अनुभव कर रहे थें और उन्हें ऐसा प्रतीत हो रहा था कि यान कठिन पत्थर की चट्टानों को