पृष्ठ:खग्रास.djvu/१८७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१८८
खग्रास

फोडता हुआ बलपूर्वक उनमें प्रविष्ट हो रहा है। उनकी गर्दन और सिर उड़ा जा रहा था। उन्होंने ताप-मापक यन्त्र से देखा—बाहर यान का बाहरी परत १५०० डिग्री तक उत्तप्त हो चुका था और उत्ताप भीतर भी पहुँच रहा था। सिर पर बाँधी हुई सख्त धातु की पट्टी ने उन्हें संज्ञाहीन होने से अब तक रोक रखा था। परन्तु अब तेजी से बेहोशी का आलम उन पर जारी होता जा रहा था। और उन्हें ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे कोई उनकी गर्दन आरी से रेत रहा हो।

अब यान का संघर्ष पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति से हो रहा था। डाक्टर स्काट अब ऐसा अनुभव कर रहे थें कि उनके शरीर के आन्तरिक अवयव सब तोडे़-मरोडे़ जा रहे हैं। और उनकी आँतें मुँह के राह बाहर निकलना चाह रही है। उन्होंने अन्तिम संकेत भेजा, अपने हाथ की एक यन्त्र पर कस कर बाँध लिया और मूर्छित हो गए।

तत्काल दो सौ वायुयान उनकी खोज में उड़ चले। अतलातिक सागर में यान का एक भाग तैरता मिला। डाक्टर उसमे मूर्छित अवस्था में पड़े थे। और उनका चेहरा विकृत हो गया था। रक्त जम कर पारे के समान हो गया था। तथा वह समस्त शरीर से बटुर कर नेत्रों और मस्तिष्क के अग्र भाग में एकत्र हो गया था। डाक्टर स्काट के शरीर में जीवन के कुछ भी चिह्न शेष न थे। परन्तु उनका नाड़ी संस्थान यत्किंचित चेतक था। उसी आशा में नया रक्त देकर, तथा अनेक उपचारों द्वारा डाक्टर स्काट के प्राणों की रक्षा कर ली गई। उस दिन अमेरिका के संयुक्त राज्य में एक उत्सव मनाया गया।

तीन महा वैज्ञानिक

कैप कनाव रेल फ्लोरिडा की अमेरिकन राष्ट्रीय विज्ञान एकादमी में अर्द्ध रात्रि के समय अमेरिका के तीन महा वैज्ञानिक अत्यन्त अगत्य की बातचीत में व्यस्त थे। सम्बन्धित व्यक्ति ही वहाँ उपस्थित थें। एकादमी के भवन पर कड़ा पहरा था और इस बात की सख्त निगरानी की जा रही थी कि संसार का कोई बाहरी व्यक्ति उनकी बात चीत न सुन सके। जिस कक्ष में ये तीनों वैज्ञानिक अपने सामने बहुत से कागजात और नक्शे टैबुल पर