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खग्रास

करके वैज्ञानिकों ने पहिले ग्रहों की यात्रा के मार्ग अर्थात् अन्तरिक्ष की खोज की योजना बनाई। जिससे इन रोमांचकारी यात्राओं में जो खतरें सामने आएँ उनसे वे जानकार हो जाएँ। तथा उनसे रक्षा करने का हल भी निकाल लिया जाय। इस योजना के अन्तर्गत कृत्रिम उपग्रह या बालचन्द्र छोड़ने की योजना का जन्म हुआ।

"हमारे साथ ही रूस ने भी इस ओर प्रगति की। और वह हम से भी पहिले दो उपग्रह छोड़ने का श्रेय प्राप्त कर चुका। अमेरिका ने अपना चिरप्रतीक्षित उपग्रह छोड़ा था, जो सफल नहीं हुआ। अब हम सब तरह तैयार है और अपना सत्तर फुट लम्बा एक्सप्लोडर अन्तरिक्ष में छोड़ने जा रहे हैं।

"निस्सन्देह यह हमारी सबसे कठिन परीक्षा का क्षण है। अब हमारे आदरणीय मित्र डाक्टर वान ब्रान आपको इस राकेट उपग्रह के सम्बन्ध में विशेष विवरण बताएँगे।"

इतना कहकर डा॰ जेम्स एलन बैठ गये। और डा॰ वान ब्रान आहिस्ता से खड़े हुए। उन्होंने कहा—

"आदरणीय मित्रों, अमेरिकन कृत्रिम उपग्रह का इतिहास जुलाई ५५ से आरम्भ होता है। जबकि हमारे राष्ट्रपति आइसन हावर के प्रेस सचिव श्री जेम्स हेगर्टी ने यह घोषणा की थी कि अमेरिका अन्तर्राष्ट्रीय भू भौतिक वर्ष के दौरान में अन्तरिक्ष में कृत्रिम ग्रह स्थापित करेगा। आपको ज्ञात है कि उपग्रह का निर्माण मुख्यत मैगनीशियन से होता है। उस पर कुछ विशेष प्रकार के लेप इसलिये किये जाते हैं कि वह सूर्य की किरणों में चमक उठे। और वैज्ञानिक और अन्य लोग आसानी से उसे अन्तरिक्ष में खोज निकाले।

आज हम जो उपग्रह अन्तरिक्ष में स्थापित कर रहे हैं उसमें रेडियो सन्देश प्रसारित करने के लिए दो ट्रान्समीटर लगे हैं। रेडियो ट्रान्समीटर के सन्देश १० तथा १००३ मेगासाइक्लि पर सुने जा सकते है। ये ट्रान्समीटर रासायनिक बैटरियों द्वारा संचालित है। यह तथ्य है कि उपग्रह बिना किसी यन्त्र की सहायता के स्वतः अन्तरिक्ष में स्थापित नहीं हो सकते। इसलिए