सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:खग्रास.djvu/१९०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१९१
खग्रास

हमने उपग्रह को राकेट के अणु भाग में स्थापित किया है। इस कार्य को सम्पादन करने में हमने अमरीकी भौतिक शास्त्री प्रोफेसर राबर्ट एच॰ गोडार्ड की पुस्तक की विशेष रूप में सहायता ली हैं। इसके अतिरिक्त हमने औबर्थ की पुस्तक से भी सहायता ली है।

"यहाँ मैं आपका ध्यान इस महत्वपूर्ण बात की ओर आकर्षित करता हूँ कि अन्तरिक्ष में कृत्रिम ग्रहों की कक्षा में स्थापित करने के लिए एक राकेट से काम नहीं चलता। उसके लिए ऐसे बड़े राकेट की आवश्यकता होती है जिसमें कई राकेट एक दूसरे के साथ इस प्रकार जुड़े हो कि एक के जल चुकने पर दूसरा चल पड़े। इस उपग्रह के प्रक्षेपणास्त्र के लिए जुपीटर-सी राकेट तैयार किया गया जो सत्तर फुट ऊँचा है। इसका व्यास लगभग नौ फुट है। और मैं समझता हूँ कि इसकी गणना संसार के अत्यधिक शक्तिशाली प्रक्षेपणास्त्र में की जायगी।

"इस प्रक्षेपणास्त्र को हमने हैट्सबिले स्थित सैनिक प्रक्षेपणास्त्र ऐजेन्सी तथा कैलीफोर्निया की जेट राकेट प्रयोगशाला में तैयार किया है। इस प्रक्षेपणास्त्र का प्रथम खण्ड रेडस्टोन एंजिन से चलाया जायगा। रेडस्टोन में द्रव ईधन प्रयुक्त किया जायगा। परन्तु जुपीटर के ऊपरी खण्ड में ठोस ईंधन रखा गया है।

"आपको ज्ञात हैं कि जुपीटर-सी की लम्बाई सत्तर फुट है और अन्तिम खण्ड पैंसिलनुमा है। उपग्रह की लम्बाई ६-६ फुट है, केवल उपग्रह का वजन १८-१३ पौण्ड तथा अन्तिम खण्ड का १२-६ पौण्ड है। ईंधन खत्म होने पर उपग्रह का पूरा वजन ३०-८० पौण्ड रह जायगा। परन्तु इसमें उपग्रह के इस्पात खोल का वजन शामिल नहीं है जो ७५ पौण्ड है। अब आप कृपा कर प्रक्षेपणास्त्र की भली भाँति जांच-पड़ताल कर लीजिए।"

तीनों वैज्ञानिकों ने खूब बारीकी से सम्मुख स्थापित विराटकाय प्रक्षेपणास्त्र का निरीक्षण किया। देख भाल चुकने पर जेम्स एलन ने कहा—"हम जुपीटर-सी के दूसरे खण्ड का भली-भाँति निरीक्षण करना चाहते है।"