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खग्रास

पूँछ से निकलने वाली गैसों के दबाव को पोण्डो में नहीं, टनों में नापा जाता है। बेशक गैसे राकेट के पीछे कैसे हवा को खींचती है। परन्तु इससे राकेट की गति में बाधा पड़ती है। इसलिए राकेट शून्याकाश में अधिक अच्छी तरह उड़ता है जहाँ वायु की घनता कम होती है।

"क्या राकेट को बाहर से वायु खींचनी नहीं पड़ती?"

"नहीं, एंजिनों और मोटरों में तथा प्रचलित वायुयानों में ऐसा होता है। परन्तु राकेट के भीतर ही आक्सीजन रहती है। इसलिए वायु न रहने पर भी वह उड़ सकता है। इसके अतिरिक्त उसे चलाने के लिए किसी चालक की आवश्यकता नहीं है।"

"बिना चालक के ये यन्त्र कैसे चलते हैं?"

"इन स्वचालित यन्त्रों में एक खास यन्त्र होता है जिसे 'जिरोस्कोप' कहते हैं। इस यन्त्र की विशेषता यह है कि उड़ने वाले राकेट के अग्र भाग को सदा एक ही दिशा में रखता है। राकेट में इस यन्त्र का मुख ऊपर की ओर रहता है, राकेट इस यन्त्र द्वारा प्रदर्शित मार्ग पर ही उड़ता है।"

अब डाक्टर वानब्रान ने कहा—"मित्रों, पिछले महीनों से प्रकृति और अन्तरिक्ष के गूढ़ रहस्यों का उद्घाटन करने के लिए अमरीकी वैज्ञानिक जो कठोर परिश्रम कर रहे थें उसके सुफल अब दृष्टिगोचर हो रहे हैं। हम आशा करते हैं कि एक्सप्लोरर १० बर्ष तक पृथ्वी की परिक्रमा करता रहेगा।

इस भू-उपग्रह का आकार पैन्सिल की शक्ल वाली ८० इंच लम्बी और ६ इंच व्यास वाली नली जैसा है। तथा इसका वजन ३०८ पौण्ड है। जिसमें से १२ ६७ पौण्ड वजन उसके अन्तिम राकेट का है। इस प्रकार ईंधन जल कर समाप्त हो जाने के बाद उपग्रह और उसके यन्त्रों का वजन १८*१६ पौण्ड ही शेष रहेगा। उपग्रह और अन्तिम दौर के राकेट को इस प्रकार जोड़ दिया गया है कि वे अलग न हो कर संयुक्त रूप में ही पृथ्वी की परिक्रमा करें। यह उपग्रह पृथ्वी पर वापस लौटने वाला नहीं है।