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खग्रास

ज्यों राकेट छोड़ने का समय निकट आता जाता था, लोगों की उत्सुकता और बेचैनी बढ़ती जा रही थी। अन्ततः केप कनावरल अनुसन्धान केन्द्र के अध्यक्ष डा॰ अर्नेस्ट स्टर्लिगर ने फायरिंग बटन दबा कर राकेट छोड़ दिया। शून्य की डिग्री पर जैसे राकेट छोड़ा गया—घनघोर गर्जन के साथ राकेट की पूँछ से ज्वाला निकली और वह द्रुत गति से आकाश में उड़ चला।

एक मिनिट बाद ही वह अन्धकार में विलीन हो गया। निकटवर्ती निरीक्षकों ने उसे ११० अंश के कोण पर पूर्व की ओर जाते देखा। छोड़े जाने के दो घण्टे के भीतर ही उसने पृथ्वी की पहिली परिक्रमा पूरी कर ली। इस समय अमरीकी वायु सेना के विकास कार्यों के उप-प्रधान लेफ्टिनेण्ट जनरल डोनाल्ड वी॰ पट ने घोषित किया कि—"अब हम बाह्य अन्तरिक्ष मण्डल में मनुष्य के देर तक यात्रा करने की स्थिति के बिल्कुल निकट है। कैलिफोर्निया इन्स्टीट्यूट आव टेक्नौलाजी की जेट चालक प्रयोगशाला के वैज्ञानिक एक्सप्लोरर से प्राप्त सन्देशों और संकेतों के आधार पर घोषित कर रहे थें कि उसे ब्रह्माण्ड किरणों, उल्का पिण्डों के कणों और असह्य ताप का सामना नहीं करना पड़ रहा। उपग्रह की सारी सूचनाएँ ब्रुसेल्स स्थिति अन्तर्राष्ट्रीय भू-भौतिक वर्ष समारोह समिति के प्रधान कार्यालय में ग्रहण की जा रही और विश्व के कोने-कोने में प्रसारित की जा रही थी।

पृथ्वी की परिक्रमा करने वाला यह उपग्रह ज्ञान वर्धन के लिए अन्तरिक्ष के रहस्यों की खोज करने में २० वर्षोंं की वैज्ञानिक परम्पराओं को पूरा कर रहा था।

सन् १९३५ में अमरीकी सेना की हवाई टुकड़ी तथा नेशनल ज्योग्राफिकल सोसाइटी ने मिलकर पृथ्वी के उच्चतम वायु मण्डल में उपकरण एवं निरीक्षक भेजे थें। वह एक्सप्लोरर प्रथम एक विशाल गुब्बारा था जिसमें उद्जन गैसे भरी थी। इसे दक्षिणी डाकोटा की काली पहाड़ियों के ऊपर उड़ाया गया था। परन्तु वह कोई ७० हजार फीट ऊपर जाकर फट गया। और नीचे आ गिरा। इसके बाद फिर रैपिडसिटी के निकट ट्रेस्टोवाउल से एक्सप्लोरर द्वितीय उड़ाया गया। यह भी एक गुब्बारा था जिसमें एक